Monday, September 11, 2006

सब कुछ तेरे पास है

अपने भीतर झाँक ले, अपना हृदय टटोल
सब कुछ तेरे पास है, अपनी आँखें खोल 

© चिराग़ जैन

शायरी

शायरी इक शरारत भरी शाम है
हर सुख़न इक छलकता हुआ जाम है
जब ये प्याले ग़ज़ल के पिए तो लगा
मयक़दा तो बिना बात बदनाम है

© चिराग़ जैन

Saturday, September 9, 2006

दिल में कोई कराह

बाक़ी नहीं है दिल में कोई कराह शायद
मुद्दत हुई, हुए थे, हम भी तबाह शायद

फिर से जहान वाले बदनाम कर रहे हैं
फिर से हुई है हम पर उनकी निगाह शायद

किस बात पर तू सबसे इतना ख़फ़ा-ख़फ़ा है
तुझको कचोटता है तेरा गुनाह शायद

फिर रेत पर लहू की बूंदें दिखाई दी हैं
कोई ढूंढने चला है सहरा में राह शायद

दुल्हन की आँख में क्यों नफ़रत उतर रही है
काज़ी ने पढ़ दिया है, झूठा निक़ाह शायद

चेहरे पे दर्द है और आँखों में है चमक-सी
तुम मानने लगे हो, दिल की सलाह शायद

© चिराग़ जैन

Sunday, September 3, 2006

ग़लतफ़हमी

एक लमहे के लिए सारी जवानी काट दी
ठीकरों की चाह में इक फ़स्ल धानी काट दी
इक न इक दिन कोई तो समझेगा हाले-दिल मिरा
इस ग़लतफ़हमी पे सारी ज़िन्दगानी काट दी

© चिराग़ जैन