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Monday, September 11, 2006
शायरी
शायरी इक शरारत भरी शाम है हर सुख़न इक छलकता हुआ जाम है जब ये प्याले ग़ज़ल के पिए तो लगा मयक़दा तो बिना बात बदनाम है
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