(एक)
आलीशान शोरूम के
चमचमाते शोकेस में
महंगी विग सिर पर लगाये
हज़ारों रुपये के लहंगे से सजा
इतरा रहा था पुतला।
(दो)
अंग्रेजी स्टाइल के
फास्ट-फूड कॉर्नर में
जगमगा रहा था
आकर्षक-स्वादिष्ट राजकचौरी से सजा
महंगा ख़ूबसूरत काउण्टर
...मद्धम नीले प्रकाश के साथ।
बोनचाइना के महंगे प्यालों में रखे
आइसक्रीम के सैम्पल
चांदी की प्लेटों में रखी मिटाइयाँ
और काँच के बाउल में सजी
महंगी नमकीन मिक्सचर
बढ़ा रही थी
दुकान की शोभा
और पेट की भूख!
(तीन)
चर्च की दीवार की ओट में
सिमट रही थी
बीस-बाइस साल की
सस्ती-सी ज़िन्दगी।
उलझे-बिखरे भूरे बाल
नक़ली नहीं थे
भद्दा-मैला
पुराना कुचला कुरता
ढँक नहीं पा रहा था
पाँच-साढ़े पाँच फुट का
गेहुँआ बदन।
बड़ी-बड़ी भूखी आँखें
देख रही थीं
फास्ट-फूड कॉर्नर के
आलीशान काउण्टर की ओर।
आसपास देख सहम जाती थी
लाचार जवानी
कमज़ोर हाथों से छिपा रही थी
अपना ग़रीब बदन
रह-रहकर।
और हाथ में दुपट्टा उठाए
मुस्कुरा रहा था
शोकेस में खड़ा पुतला।
✍️ चिराग़ जैन
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