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Sunday, September 3, 2006
ग़लतफ़हमी
एक लमहे के लिए सारी जवानी काट दी ठीकरों की चाह में इक फ़स्ल धानी काट दी इक न इक दिन कोई तो समझेगा हाले-दिल मिरा इस ग़लतफ़हमी पे सारी ज़िन्दगानी काट दी
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