तुम्हारी अनुपस्थिति में
राह भटक जाती हैं
अभिव्यक्तियाँ!
अक्सर ऐसा होता है
कि उपलब्धि मिलने पर
होठों पर मुस्कान लिए
मेरी निग़ाह तलाशती है
इक चेहरा
अपने आस-पास।
और जब
विफल होने लगती है तलाश
तो झट से
आँखों की कोरों पर
आ ठहरती है
अधरों की मुस्कान।
और दु:ख की घड़ियों में
तुम्हें आसपास न पाकर
मुस्कुराकर रह जाते हैं होंठ!
© चिराग़ जैन
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