Tuesday, January 26, 2016

हर त्यौहार हर रोज़

आज एक टीवी चैनल पर समाचार प्रस्तोता टाइम पास करने के लिए बोल रहा था कि ये दुर्भाग्य की बात है कि हम लोग साल में कुछ ही दिन देशभक्ति के गीत गाते हैं। हम साल में एक ही दिन शहीदों को याद करते हैं। मुझे उसकी बात सुनकर लगा कि सचमुच करते तो हम ग़लत ही हैं। यह परंपरा बंद होनी चाहिए। 

मैं प्रधानमंत्री जी को एक पत्र लिखकर अनुरोध करूँगा कि वे अपनी दिनचर्या बदलें। उन्हें चाहिए कि वे रोज़ सुबह उठकर सबसे पहले अमर जवान ज्योति, राजघाट, विजयघाट, शक्तिस्थल और शांतिवन पर पुष्प चढ़ाते हुए लालकिले जाएं। वहाँ झंडारोहण करके राष्ट्र को संबोधित करें। उसके बाद सीधे विजय चौंक पहुँच कर गणतंत्र परेड में सम्मिलित हों। उसके बाद देश को ईद-उल-फ़ित्र, ईद-उल-जुहा, ईद-ए-मिलाद, मिलाद-उल-नबी, शब्-ए-बारात, मुहर्रम, होली, दीवाली, बिहू, ओणम, पोंगल, रक्षाबंधन, हरियाली तीज, मकर संक्रांति, लोहड़ी, महावीर जयंती, रामनवमी, गुरुपर्व, बुद्ध पूर्णिमा, वसंत पंचमी, वाल्मीकि जयंती, जन्माष्टमी, दुर्गापूजा, गणेश चतुर्थी, पर्यूषण, विश्वकर्मा जयंती, ईस्टर, गुड फ्राइडे, रविदास जयंती, बैसाखी, अहोई अष्टमी, सकट चौथ जैसे सभी पर्वों की शुभकामनाएं दें। इसके बाद दोपहर का भोजन करें और फिर विवेकानंद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र तिलक, अशफ़ाक़ुल्लाह खान, रामप्रसाद बिस्मिल, बिनोवा भावे, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय, महाराणा प्रताप, वीर सावरकर, राजा राममोहन राय, पन्ना धाय, सम्राट अशोक, रणजीत सिंह, बिरसा मुंडा, कुँवर सिंह, खुदीराम बोस, स्वामी श्रद्धानंद, छत्रपति शिवाजी, और जो जो भी महान हैं उन सबके बलिदानों को याद कर गमगीन होकर बैठे रहें। वहां से निवृत्त होकर रामलीला मैदान पहुंचें और हवा में तीर छोड़कर बुराई पर अच्छाई की विजय के पर्व को याद करें। वहां से जामा मस्जिद पहुँच कर दावत-इ-इफ़्तार में शामिल हों। और उसके बाद किसी गिरिजा में जाकर जीसस को जन्मदिन की बधाई देते हुए संता के कपड़े पहन कर बच्चों को उपहार बाँटने निकल पड़ें। रात भर उपहार बांटने के बाद सुबह फिर से फूल लेकर राजघाट की ओर निकल लें। 

यदि हमारे प्रधानमंत्री जी रोज़ इस दिनचर्या का पालन करें तो कोई आहत होकर यह न कह पाएगा कि हम साल भर में सिर्फ़ एक दिन शहीदों को याद करते हैं, या हमें बुद्ध, महावीर, देश या समाज की याद साल में एकाध दिन ही आती है। और ऐसा करते हुए इस बात की बिल्कुल फ़िक्र न करें कि लोग रोज़ मेरी एक जैसी दिनचर्या देख कर बोर हो जाएंगे, क्योकि एक महीने बाद कोई दूसरा प्रधानमंत्री इस दिनचर्या को करता दिखेगा। उसके एक महीने बाद कोई और... और फिर कोई और और इन सब प्रधानमंत्रियों का योगदान भी रोज़ याद किया जाएगा। 

© चिराग़ जैन

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