Tuesday, August 16, 2016

खुद से दूर

महफ़िलों की तेज़ नज़रों से छिटक कर रो पड़ा
मन हुआ भारी तो इक पल को पलट कर रो पड़ा

राम जाने एक सूने घोंसले को देख कर
इक मुसाफिर क्यों अचानक से बिलख कर रो पड़ा

प्यार से, झुँझलाहटों से हर तरह रोका उन्हें
और फिर बेसाख़्ता लाचार होकर रो पड़ा

अपने सब अपनों को खुद से दूर जाता देखकर
लौट कर आया तो पर्दों से लिपट कर रो पड़ा

© चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment