महफ़िलों की तेज़ नज़रों से छिटक कर रो पड़ा
मन हुआ भारी तो इक पल को पलट कर रो पड़ा
राम जाने एक सूने घोंसले को देख कर
इक मुसाफिर क्यों अचानक से बिलख कर रो पड़ा
प्यार से, झुँझलाहटों से हर तरह रोका उन्हें
और फिर बेसाख़्ता लाचार होकर रो पड़ा
अपने सब अपनों को खुद से दूर जाता देखकर
लौट कर आया तो पर्दों से लिपट कर रो पड़ा
© चिराग़ जैन
No comments:
Post a Comment