Sunday, September 18, 2016

चलो हटो यहाँ से---

जब हम लालकिले पर भाषण देने जाते हैं तो सीमा पार आतंकवाद की बोलती बंद करने का दम्भ भरते हैं। जी-20 शिखर वार्ता में व्यापार-धंधे की बातें करने जाते हैं तो आतंक के सफाए की गुहार लगाने लगते हैं। चुनाव में प्रचार करने जाते हैं तो 56 इंच का सीना दिखाकर उस पाकिस्तान को डराने लगते हैं, जिसे वोट नहीं देना।

लेकिन पाकिस्तान डरता नहीं है। वह आता है और पठानकोट में उत्पात मचा कर चला जाता है। हमारा काफी नुक़सान होता है। हम उसे मारने की हिम्मत नहीं कर पाते। बल्कि खिसियाते हुए अपनी खिड़की में दुबककर मुर्गे की तरह गर्दन निकाल कर बोलते हैं - "अबकी बार मत आ जाइयो, वरना छोड़ेंगे नहीं।" ...वह इस धमकी को सुनता है, ज़ोरदार ठहाका मारकर हँसता है और उरी की फुलवारी तहस-नहस करके भाग जाता है।

हमारे स्वाभिमान और शौर्यबोध की स्थिति उस अंधे भिखारी जैसी हो गई है जिसे गली के शरारती बच्चे छेड़-छेड़ कर ललकारते हुए भाग जाते हैं और वह हवा में लकड़ी घुमाते हुए अपनी बेचारगी को खोखले क्रोध से ढाँपने की असफल कोशिश करता-करता रो पड़ता है। अंधा रोता रहता है, बच्चे उसकी इस दशा देखकर ज़ोर-ज़ोर से हँसते रहते हैं।

हमारे प्रधानमंत्री जी को उस भिखारी की दशा पर दया आती है। वे उसके आंसू पोंछते हैं। उसे हौसला देते हैं। उसे बताते हैं कि ये बच्चे तो बहुत छोटे हैं। तुम इतने बड़े हो। घबराओ मत। अबकी बार ये तुम्हें छेड़ें तो तुम इन्हें ऐसी पटखनी देना कि याद रखें। मेरी भुजाओं में बहुत शक्ति है। मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। इन शरारती लड़कों को अपनी शेर जैसी दहाड़ से बिलों में घुसा दूँगा। तुम चिंता मत करो। अमरीका, रूस, जापान, चीन, इंग्लैण्ड सब जगह मेरी पहुँच है। तुम आराम से जियो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।

अंधे का आत्मविश्वास जाग जाता है। बच्चे फिर आते हैं। भिखारी के कंधे पर चिकौटी काटते हैं। अंधा ज़ोर से लकड़ी उठा कर चारों ओर घुमा देता है। बच्चे भाग जाते हैं और वह लकड़ी खुद उस अंधे के माथे पर आ लगती है। अंधा क्रोध, पीड़ा, अपमान, भय और विवशता से आहत होकर धरती पर गिर जाता है।

प्रधानमन्त्री जी उसे बचाने नहीं आते। बचाना तो दूर वे उसे उठाने तक नहीं आते। उनके मंत्रिमंडल के पास समय ही नहीं है उस धराशायी शौर्यबोध को उठाने का। वे सब बहुत व्यस्त हैं। उन्हें केजरीवाल की लंबी जीभ पर टिप्पणी करनी है। उन्हें राहुल गांधी को पप्पू कहकर इमेज डैमेज करना है। उन्हें जियो की एड फ़िल्मशूट करनी है। उन्हें सूट का नाप देने जाना है। उन्हें अपने सीने का नाप लेकर जनता को बताना है। उन्हें नियुक्तियाँ पूरी करनी हैं। उन्हें बुलेट ट्रेन लानी है। उन्हें बहुत कुछ करना है जनाब। उन्हें डिस्टर्ब मत करो।

ये अड़ोस-पड़ोस के बेमतलब मुआमलात में उनको घसीटकर उनका समय नष्ट मत करो। चलो हटो यहाँ से। साहब को प्राणायाम करने दो। 

© चिराग़ जैन 

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