जब सैनिकों के सिर काटने जैसा कुकृत्य पाकिस्तान की सेना ने किया था तब मेरे व्यंग्य-बोध ने क्रुद्ध होकर शब्दों में आकार लिया था। निम्न टिप्पणी को अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग अवसर पर अलग अलग तरह से प्रचारित किया। उरी में सुप्त सिपाहियों की बर्बर ह्त्या के बाद एक बार फिर यह धिक्कार वाक्य प्रासंगिक हो गया है- एक बच्चे ने मुझसे पूछा - "पाकिस्तानी सैनिक हमारे सैनिकों के सिर का क्या करेंगे?" मैंने कहा- "वो अपने यहाँ के लोगों को दिखाएंगे कि गर्व से उठे हुए सिर कैसे होते हैं!"
© चिराग़ जैन
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