गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Monday, November 14, 2016
मजमेबाज़ी का तमगा
हम हैं हिंदी कविता की बुनियाद में गड़ने वाले लोग कहीं बहुत जमने वाले और कहीं उखड़ने वाले लोग कवि-सम्मेलन पर मजमेबाज़ी का तमगा मत टाँको मंचों पर भी मिल जाते हैं, लिखने-पढ़ने वाले लोग
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