जब किसी राधिका ने सुरों को छुआ
लोक बस बाँसुरी में मगन हो गया
प्रेम ने फुसफुसा कर कहा जो कभी
अनहदी राग वह इक कथन हो गया
द्वार पर एक जोगी खड़ा भरतरी
एक पल में पराया किया प्रीत को
था कठिन द्वार पर भूल कर प्रेम को
पीठ पर लाद लाना किसी जीत को
पींगला की व्यथा आंख से बह चली
गोरखों को लगा आचमन हो गया
एक अनजान पथ पर बढ़ा जब कदम
दिल धड़कता रहा, पाँव कँपते रहे
अपशगुन इस घड़ी दिख न जाए हमें
आँख मूंदे हुए मन्त्र जपते रहे
प्रीत ने मुस्कुरा कर कहा- ‘बढ़ चलो!’
यूँ लगा ज्यों घटित इक शगन हो गया
था अनैतिक किसी ब्याहता के लिए
पर पुरुष से हृदय नेह को जोड़ना
नीतियाँ एक निर्णय पे सहमत हुईं
इस दिवानी को जीवित नहीं छोड़ना
हो गया जिससे मीरा का नैतिक पतन
अनुकरण योग्य वह आचरण हो गया
पीर अपनी सुनें और कविता लिखें
वक़्त इतना किसे मिल सका प्यार में
मन स्वयम् को अभी सुन नहीं पाएगा
व्यस्त है आज प्रियतम के सत्कार में
एक मन की ख़ुशी छंद में बंध गई
गीत में प्रीत अवतरण हो गया
© चिराग़ जैन
लोक बस बाँसुरी में मगन हो गया
प्रेम ने फुसफुसा कर कहा जो कभी
अनहदी राग वह इक कथन हो गया
द्वार पर एक जोगी खड़ा भरतरी
एक पल में पराया किया प्रीत को
था कठिन द्वार पर भूल कर प्रेम को
पीठ पर लाद लाना किसी जीत को
पींगला की व्यथा आंख से बह चली
गोरखों को लगा आचमन हो गया
एक अनजान पथ पर बढ़ा जब कदम
दिल धड़कता रहा, पाँव कँपते रहे
अपशगुन इस घड़ी दिख न जाए हमें
आँख मूंदे हुए मन्त्र जपते रहे
प्रीत ने मुस्कुरा कर कहा- ‘बढ़ चलो!’
यूँ लगा ज्यों घटित इक शगन हो गया
था अनैतिक किसी ब्याहता के लिए
पर पुरुष से हृदय नेह को जोड़ना
नीतियाँ एक निर्णय पे सहमत हुईं
इस दिवानी को जीवित नहीं छोड़ना
हो गया जिससे मीरा का नैतिक पतन
अनुकरण योग्य वह आचरण हो गया
पीर अपनी सुनें और कविता लिखें
वक़्त इतना किसे मिल सका प्यार में
मन स्वयम् को अभी सुन नहीं पाएगा
व्यस्त है आज प्रियतम के सत्कार में
एक मन की ख़ुशी छंद में बंध गई
गीत में प्रीत अवतरण हो गया
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