Monday, March 27, 2017

पड़ताल

जी भर कर पड़ताल करो तुम
मन में उपजी शंकाओं की
संदेहों से खारी होंगी
मीठी झीलें आशाओं की

जब भी प्रश्न करोगे कोई उत्तर तुमको मिल जाएगा
पर संदेहों के कंकर से अपनापन तो हिल जाएगा
इक हलचल सी मच जाएगी, पाल हिलेगी नौकाओं की
संदेहों से खारी होंगी, मीठी झीलें आशाओं की

ख़ुद से पूछो अग्नि परीक्षा से आख़िर किसने क्या पाया
सीता ने सम्मान गँवाया, राघव ने अधिकार गँवाया
धोबी के लांछन से कम थी, सारी पीड़ा लंकाओं की
संदेहों से खारी होंगी, मीठी झीलें आशाओं की

यह भी सच है, राम छुएं तो प्राण पुनः संचारित होंगे
यह भी सच है पीड़ित दोषी से पहले अभिशापित होंगे
पत्थर बनकर रह जाएगी, देह अभागी अबलाओं की
संदेहों से खारी होंगी, मीठी झीलें आशाओं की

क्वारे सच पर प्रश्न उठाना क्या सचमुच संत्रास नहीं है
कैसा क्षण है, पतवारों को नाविक पर विश्वास नहीं है
शंका के बीहड़ में पनपी, नागफनी आशंकाओं की
संदेहों से खारी होंगी, मीठी झीलें आशाओं की

खुद को साबित करते-करते, ढल जाएगी धूप सुनहरी
आक्रोशों की हुई गवाही, भावुकता की लगी कचहरी
चतुराई तो हत्यारिन है, निश्छल सी अभिलाषाओं की
संदेहों से खारी होंगी, मीठी झीलें आशाओं की


© चिराग़ जैन

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