Sunday, March 12, 2017

पागलपन का सुख

अब नहीं आना हमको सारी दुनिया के समझाने में
ये क्या जानें कितना सुख मिलता पागल हो जाने में

दुनिया की सारी दौलत ठुकरा बैठी दीवानी थी
उसको अपने नटवर नागर के सँग प्रीत निभानी थी
मिश्री सा मीठापन पाया उसने विष पी जाने में
ये क्या जानें कितना सुख मिलता पागल हो जाने में

थाम लुकाठी हाथ कबीरा साखी गाया करता था
ढोंगी को झीनी चादर से ख़ूब छकाया करता था
अपना ही घर फूंक लिया दुनिया के दीप जलाने में
ये क्या जानें कितना सुख मिलता पागल हो जाने में

बिगड़े मस्त दिमाग़ों में ही ख़ुशियों वाले लच्छे हैं
हमको पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे हैं
रंग बसंती गहराएगा फाँसी पर चढ़ जाने में
ये क्या जानें कितना सुख मिलता पागल हो जाने में

जब आँखों की एक झलक से सारी दुनिया हल्की हो
जब कोई हिचकी पलकों से आंसू बनकर ढलकी हो
उसके बिन जीने से अच्छा है उस पर मर जाने में
ये क्या जानें कितना सुख मिलता पागल हो जाने में

जिन आँखों में रंग ख़ुशी का भरना अच्छा लगता है
उसकी हर इक चाहत पूरा करना अच्छा लगता है
अपने सारे काम भुला कर उसका हाथ बँटाने में
ये क्या जानें कितना सुख मिलता पागल हो जाने में

मन करता है हाथ उठाकर मुक्त गगन में बह जाएँ
समझ मना करती है जिनको, वो सब बातें कह जाएँ
कितनी इच्छाएँ कैदी हैं मन के पागलखाने में
ये क्या जानें कितना सुख मिलता पागल हो जाने में

जब कोई बेचारा केवल आँख सेकता रह जाए
बंदर बोटी ले भागे और शेर देखता रह जाए
किसी और की पटी प्रेमिका को लेकर भग जाने में
ये क्या जानें कितना सुख मिलता पागल हो जाने में

© चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment