Sunday, December 24, 2017

आलोचना-आमंत्रण

सिर्फ़ प्रशंसा से निश्चित ही धार बिगड़ती है लेखन की
तुम मेरे गीतों की अब से निर्मम-निठुर समीक्षा करना

बगिया के जो बिरवे माली की कैंची से दूर रहे हैं
वो बगिया की उर्वर भू से हटने को मजबूर रहे हैं
छँटने-कटने की पीड़ा से ही मिलता है रूप सुदर्शन
तुम बस घावों पर नव पल्लव उगने तलक प्रतीक्षा करना

मेरे अक्षर कवि-गुरुकुल में सद्य प्रविष्टित राजकुँवर हैं
इनके केशों का मुण्डन भी अंतर्मन पर इक पत्थर है
पर शिक्षा के अनुशासन हित इनको भिक्षुक बनना होगा
इन सुकुमारों की भी बाकी सब जैसी ही दीक्षा करना

लाड़-दुलार अधिक होने से पीढ़ी नष्ट हुई जाती है
धूल सना जीवन जीकर ही सौंधी महक सृजन पाती है
अलग नियम से राजकुँअर पर कायरता का दोष लगेगा
हो पाए तो इनकी, सबसे बढ़कर कठिन परीक्षा करना

© चिराग़ जैन

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