Monday, February 26, 2018

प्यास ठहरी है

रेत का साम्राज्य है बस
हो चुके हैं घाट बेबस
पर्वतों पर जल नहीं है
दूर तक बादल नहीं है
चल रहे हैं रेत पर, तपती दुपहरी है
एक युग से प्यास ठहरी है

पत्थरों के आख़िरी कण तक नहीं है बून्द जल की
याद रख पाए नमी को इस जतन में आँख छलकी
आँख के नीचे बची है शेष, झरनों की निशानी
पाँव के छाले सुनाते हैं जलाशय की कहानी
खेत से उठती हर इक आवाज़ बहरी है
एक युग से प्यास ठहरी है

स्रोत सूने हो गए हैं, बस्तियों में हैं शिकारी
थक चुका सागर तरस कर, प्यास जीती, आस हारी
जोड़ रखती थीं धरा को, वे जड़ें बिखराव में हैं
इक सदी का दर्द जीवित इन जड़ों के घाव में है
मर गया कलरव नदी की पीर लहरी है
एक युग से प्यास ठहरी है

श्रम जलाशय खोजता है रेत से सूखे क्षणों में
पीढ़ियाँ घिरने लगी हैं आग के आकर्षणों में
फूँक दे जो ज़िन्दगी को, अब न ऐसा स्वप्न पालो
हो सके तो नौनिहालों को झुलसने से बचा लो
हर नमी को सोखता सूरज सुनहरी है
एक युग से प्यास ठहरी है

© चिराग़ जैन

Sunday, February 25, 2018

इतनी भी नाराज न होना

अभी गुलाबी रंगत वाले फूल नहीं मुरझाए होंगे
अभी मेज से तुमने मेरे तोहफे नहीं हटाए होंगे
अभी फोन में मेरा नम्बर उसी नाम से दर्ज मिलेगा
अभी गैलरी में केवल मेरे फोटो का सर्च मिलेगा
तुम तक मेरा प्यार न पहुँचे, तुम ऐसी परवाज न होना
इतनी भी नाराज न होना

प्यार भरे पल याद आएं तो अनबन को सुलझा ही लेना
बार-बार मैं फोन करूँ तो मन ही मन मुस्का ही लेना
पीछे पड़ जाने की मेरी आदत से तो वाकिफ हो ही
दाँत पीसकर, झुंझलाकर तुम मेरा फोन उठा ही लेना
समय बिताने भर को विंडो शॉपिंग की मोहताज न होना
इतनी भी नाराज न होना

कोई फिल्मी गीत बजेगा तो मेरी याद आ जाएगी
जब फूलों पर नूर सजेगा तो मेरी याद आ जाएगी
जिस खिड़की पर बैठे हम-तुम घंटों बतियाते रहते थे
जब उस पर सावन बरसेगा तो मेरी याद आ जाएगी
मुझे भूल जाने की कोशिश में अपना सुख साज न खोना
इतनी भी नाराज न होना

मीठे मीठे झगड़ों को सबकी चर्चा तक मत ले जाना
किसी सहेली को अपने मन की ये बातें मत बतलाना
भीगी पलकों से जो कंधा ढूंढोगी वो धुंधला होगा
अनबन कड़वाहट बन जाए इतने आँसू नहीं बहाना
जिद के कारण प्यार भुला दो, ऐसा कठिन रिवाज न होना
इतनी भी नाराज न होना

फिर भी यदि नाराज रहो तो थोड़ी रस्म निभाती रहना
अगर अकेली बैठी हो तो झूठा फोन मिलाती रहना
कॉलेज की कैंटीन हमारे झगड़े को पब्लिक ना कर दे
मेरे खाते में चढ़वाकर कभी-कभी कुछ खाती रहना
मुझे देखकर खुश हो जाने का अपना अंदाज न खोना
इतनी भी नाराज न होना

© चिराग़ जैन

Thursday, February 22, 2018

पूरी राजनीति हो गई मवाली

पूरी राजनीति हो गई मवाली, सभी के सब जाली
हैं होली के रंग रसिया
एक-दूसरे को मार मार ताली, सुनावें रोज गाली
ये ठीक नहीं ढंग रसिया

अभी चाय का शोर थमा था, तभी पकौड़ा आ पहुंचा
देसी गदहे नहीं चले तो, अरबी घोड़ा आ पहुंचा
नरसिम्हा से मुक्त हुए तो देवेगौड़ा आ पहुंचा
पहला पकड़ा नहीं गया था, नया भगौड़ा आ पहुंचा
जाने कैसी करी रे रखवाली, थमा के उन्हें ताली
क्यों छान रहे भंग रसिया

पहले हमसे वोट, अनोखे स्वप्न दिखाकर छुड़वा ली
कांग्रेस की करतूतों का राग सुनाकर छुड़वा ली
भारत में रहकर दी राहत, बाहर जाकर छुड़वा ली
सब्सिडी भी ऊँची-ऊँची बात बनाकर छुड़वा ली
करी डीजल की टंकी भी खाली, चिढ़ाने लगी थाली
जमाना हुआ तंग रसिया

हाथ बांधकर घर बैठे हैं लालकृष्ण आडवाणी जी
अच्छे अच्छे मांग गए थे जिनके आगे पानी जी
बंद कर दिए नोट अचानक खूब करी मनमानी जी
सबको समझा दिया मिनिट में माया आनी जानी जी
सबने सड़कों पे लाइनें लगा ली, मशीनें नोटों वाली
महीनों रहीं दंग रसिया

मंगलयान गया तो उसका पूरा क्रेडिट ले भागे
बुलेट ट्रेन को कर्जा लेने तुम दौड़े आगे-आगे
जिसने तुम पर प्रश्न उठाया उस पर ही गोले दागे
न्याय मीडिया तक आ पहुंचा बस उस रोज नहीं जागे
बेच खाई विरोधियों की गाली, बिगड़ती संभाली
तू पूरा मलंग रसिया

सुखरामों की किस्मत खुल गई, मुफ्ती से इंसाफ हुआ
नीतिश बाबू से झगड़े का ऊँचा पर्वत हाफ हुआ
अच्छा-बुरा चरित्र धुल गया, नीति-नियम का लाफ हुआ
जिसने बीजेपी जॉइन की उसका दामन साफ हुआ
आधी कांग्रेस खुद में मिला ली, ये चाय वाली प्याली
हुई है बदरंग रसिया

योगी ने भगवा रंग डाला बाकी रंग निचोड़ दिया
अमित शाह ने हर प्रदेश में बीजेपी बम फोड़ दिया
नोट बंद कर जीएसटी से सब व्यापार झिंझोड़ दिया
जनता की पॉकेट पे तुमने अरुण जेटली छोड़ दिया
हाय कैसी ये चैकड़ी बना ली, हुए हैं सब ठाली
मचाया हुड़दंग रसिया

© चिराग़ जैन

Wednesday, February 21, 2018

पूरी राजनीति हो गई मवाली

पूरी राजनीति हो गई मवाली, 
सभी के सब जाली 
हैं होली के रंग रसिया 
एक-दूसरे को मार मार ताली, 
सुनावें रोज़ गाली 
ये ठीक नहीं ढंग रसिया 

अभी चाय का शोर थमा था, तभी पकौड़ा आ पहुंचा 
देसी गदहे नहीं चले तो, अरबी घोड़ा आ पहुंचा 
नरसिम्हा से मुक्त हुए तो देवेगौड़ा आ पहुंचा 
पहला पकड़ा नहीं गया था, नया भगौड़ा आ पहुंचा 
जाने कैसी करी रे रखवाली, 
थमा के उन्हें ताली 
क्यों छान रहे भंग रसिया 

पहले हमसे वोट, अनोखे स्वप्न दिखाकर छुड़वा ली 
कांग्रेस की करतूतों का राग सुनाकर छुड़वा ली 
भारत में रहकर दी राहत, बाहर जाकर छुड़वा ली 
सब्सिडी भी ऊँची-ऊँची बात बनाकर छुड़वा ली 
करी डीजल की टंकी भी खाली, 
चिढ़ाने लगी थाली 
ज़माना हुआ तंग रसिया 

हाथ बांधकर घर बैठे हैं लालकृष्ण आडवाणी जी 
अच्छे अच्छे मांग गए थे जिनके आगे पानी जी 
बंद कर दिए नोट अचानक खूब करी मनमानी जी 
सबको समझा दिया मिनिट में माया आनी जानी जी 
सबने सड़कों पे लाइनें लगा ली, 
मशीनें नोटों वाली 
महीनों रहीं दंग रसिया 

मंगलयान गया तो उसका पूरा क्रेडिट ले भागे 
बुलेट ट्रेन को कर्जा लेने तुम दौड़े आगे-आगे 
जिसने तुम पर प्रश्न उठाया उस पर ही गोले दागे 
न्याय मीडिया तक आ पहुंचा बस उस रोज़ नहीं जागे 
बेच खाई विरोधियों की गाली, 
बिगड़ती संभाली 
तू पूरा मलंग रसिया 

सुखरामों की किस्मत खुल गई, मुफ़्ती से इंसाफ हुआ 
नीतिश बाबू से झगड़े का ऊँचा पर्वत हाफ हुआ 
अच्छा-बुरा चरित्र धुल गया, नीति-नियम का लाफ़ हुआ 
जिसने बीजेपी जॉइन की उसका दामन साफ हुआ 
आधी कांग्रेस खुद में मिला ली, 
ये चाय वाली प्याली 
हुई है बदरंग रसिया 

योगी ने भगवा रंग डाला बाकी रंग निचोड़ दिया 
अमित शाह ने हर प्रदेश में बीजेपी बम फोड़ दिया 
नोट बंद कर जीएसटी से सब व्यापार झिंझोड़ दिया 
जनता की पॉकेट पे तुमने अरुण जेटली छोड़ दिया 
हाय कैसी ये चौकड़ी बना ली, 
हुए हैं सब ठाली 
मचाया हुड़दंग रसिया 

© चिराग़ जैन

Tuesday, February 20, 2018

निर्माण-प्रक्रिया

टूट कर बिखरे हुए व्यक्तित्व पर
आँसुओं ने कर दिया छिड़काव
गूंद डाला मुट्ठियों से भाग्य ने
हो गईं सब ग्रंथियाँ समभाव

अनुभवों में सन गईं जब कर्म की दोनों हथेली
तब समय के चाक पर निस्तेज ने आकार पाया
उंगलियों ने दाब दे-देकर दुलारा पोरवों से
तब कहीं संज्ञा हुई हासिल, तभी किरदार पाया
जो हुआ साकार उससे लोक ने
ठीक ऐसा ही किया बर्ताव

जो दहकती आग से गुजरे उन्हीं में पूर्णता है
सौंधता है बाँह में उनकी ठहर कुछ देर पानी
जो लपट के ताप से बचकर निकल आए अधूरे
उन घड़ों से आस रखकर डूब जाती है जवानी
सोहनी की प्रीत प्यासी रह गई
भर न पाया माहियों का घाव

टूट जाना ही प्रथम सोपान है निर्माण क्रम का
दर्द से धुलकर चमक आती पिघलती पुतलियों में
विष पचा लेगा जगत तो क्षीर से अमृत मिलेगा
घर्षणों का दर्द पत्थर को सजाता उंगलियों में
रेत पर बैठी निरर्थक ही रही
भीगकर ही पार होती नाव

© चिराग़ जैन

Monday, February 19, 2018

क्षोभ के वातावरण में

सभ्यताओं के क्षरण में; क्षोभ के वातावरण में
वेदना के मूल्य का अनुमान कमतर ही रहेगा
व्यस्तताओं को हृदय का भान कमतर ही रहेगा

मुद्रिका में प्रेम का क्षण तो सहेजा जाएगा पर
भूल जाएगा मिलन के सौख्य को दुष्यंत इक दिन
प्रीति की उजड़ी हुई क्यारी पुनः पुष्पित न होगी
हर कथा है नियत इक छोर पर तो अंत इक दिन
विष पिलाया जाएगा भी; गीत गाया जाएगा भी
बावरी की प्रीति से विज्ञान कमतर ही रहेगा
वेदना के मूल्य का अनुमान कमतर ही रहेगा

जीतकर लंका अवध को लौट आए राम लेकिन
जानकी के त्याग की लौ से हृदय जलता रहेगा
न्याय की वेदी जिसे अपनत्व कहकर ठग चुकी है
वो अहम संबंध मन की टीस बन गलता रहेगा
याद हर बाकी रहेगी; रात एकाकी रहेगी
इस पराभव का जगत् को ज्ञान कमतर ही रहेगा
वेदना के मूल्य का अनुमान कमतर ही रहेगा

जो नहीं सीखा अभी संवेदना से पार पाना
अपशकुन है उस धनंजय का महारण में उतरना
हाथ में गाण्डीव लेकर भी नयन जो नम करेगा
है नियत उसका निज अन्तर आत्मा के हाथ मरना
शस्त्र सब तूणीर में हो; और अंतस पीर में हो
तो शरों का लक्ष्य हित संधान कमतर ही रहेगा
वेदना के मूल्य का अनुमान कमतर ही रहेगा

साधना को भंग करने मेनकाएँ आएंगी ही
इंद्र लेंगे सत्यवादी की बहुत दुष्कर परीक्षा
हर सृजन की राह में शीशा बिछाया जाएगा फिर
युग करेगा सत्व की उपलब्धियों की भी समीक्षा
कष्ट के बादल फटेंगे; राह में पर्वत डटेंगे
आत्मबल के शौर्य से व्यवधान कमतर ही रहेगा
वेदना के मूल्य का अनुमान कमतर ही रहेगा

© चिराग़ जैन

Thursday, February 15, 2018

वैदेही वनवासी है

रघुपति राघव के चेहरे पर गहरी आज उदासी है
अवधपुरी में उत्सव है पर वैदेही वनवासी है

राजसूय के आयोजन का वैभव आज पधारा है
इक राघव के मन से बाहर हर कोना उजियारा है
गाजे-बाजे, ढोल-नगाड़े, शुभ-मंगल और छप्पन भोग
राम समझते हैं क्षणभंगुर हैं ये सब के सब संयोग
जनकसुता का प्रेम लब्ध है, बाकी सब आभासी है
अवधपुरी में उत्सव है पर वैदेही वनवासी है

रघुकुल राघव की जय-जय से धरती-नभ आच्छादित है
कीर्ति ध्वजा की सजधज लखकर जन-गण-मन आह्लादित है
किन्तु सियावर राम हृदय को यह उत्सव इक तर्पण है
प्राणप्रिया सीता पीड़ित है, धोबी को आमंत्रण है
बाहर राजा-सा दिखता है, भीतर इक संन्यासी है
अवधपुरी में उत्सव है पर वैदेही वनवासी है

पूजन में तो स्वर्णसिया से रीति निभा ली जाएगी
किन्तु हिया से नेह लुटाती प्रीति कहाँ से आएगी
उच्चारण होगा मंत्रों का, यज्ञ प्रखरता पाएगा
किन्तु वियोगी मन समिधा से पूर्व भस्म हो जाएगा
प्रियतम के बिन क्या उद्यापन, विरही मन उपवासी है
अवधपुरी में उत्सव है पर वैदेही वनवासी है

© चिराग़ जैन

Wednesday, February 14, 2018

मोल केवल ध्येय का है

प्रश्न तो उद्देश्य का है, मोल केवल ध्येय का है
जो मिला आशीष बनकर, अर्थ उस पाथेय का है
मात्र जीने के लिए सब लोग जीकर मर रहे हैं
कर्म तो सब कर रहे हैं।
कर्म तो सब कर रहे हैं।

जो सहजता से नियत पथ पार कर उजियार देगी
बस उसी पहली किरण को अर्घ्य का वैभव मिलेगा
बादलों के द्वंद से भी दामिनी उत्पन्न होगी
किन्तु इस हठधर्मिता को मान वैसा कब मिलेगा
एक प्राची की उपज है, एक गर्जन की सहेली
एक को जग पूजता है, एक से सब डर रहे हैं
कर्म तो सब कर रहे हैं।
कर्म तो सब कर रहे हैं।

एक गोवर्द्धन उठाकर कृष्ण गिरधारी कहाए
द्रोणपर्वत हाथ पर धर लाए थे हनुमान सारा
किन्तु जब कैलाश को लंका लिवाने चल दिया तो
शक्ति के मद में पगा लंकेश का अभिमान हारा
एक जग कल्याण का था, एक निज अभिमान का था
एक मन भीतर विराजे, एक मन बाहर रहे हैं
कर्म तो सब कर रहे हैं।
कर्म तो सब कर रहे हैं।

कृष्ण ने जिस काल में युग के हृदय पर छत्र पाया
कंस ने उस ही समय में लोकनिंदा पाई जग से
जब युधिष्ठिर धर्म की सीमा समझकर लड़ रहे थे
तब सुयोधन कर रहा था, धूर्तता-चतुराई जग से
एक रावण का अहम था, एक राघव की सरलता
एक ने कुल को डुबोया, एक के पत्थर बहे हैं
कर्म तो सब कर रहे हैं
कर्म तो सब कर रहे हैं

© चिराग़ जैन

Monday, February 12, 2018

समझौता

अपने स्वर्ण सरीखे शब्दों में मैं अगर मिलावट कर लूँ
तो चमकीले पत्थर मेरे भी जीवन में जड़ जाएंगे
कुंदन जैसे शुद्ध विचारों में कुछ समझौता घुल जाए
तो मेरे हित नित्य सफलता के आभूषण गढ़ जाएंगे

चंदन कहकर कीकर बेचूँ -लाभ यही है, मंत्र यही है
लोभ प्रपंचों की दुनिया में धर्म यही है, तंत्र यही है
लेकिन ऐसी विजय पताका किन हाथों से फहराऊंगा
दर्पण के सम्मुख आया तो मैं कैसे मुख दिखलाऊँगा
जिस दिन मेरा पेट विवश कर देगा गर्दन के झुकने को
उस दिन मेरी ख़ुद्दारी के दावे झूठे पड़ जाएंगे

नैतिक शिक्षा की पुस्तक का ज्ञान भुलाना आवश्यक है
अपने आदर्शों के शव का कुचला जाना आवश्यक है
भौतिक सुख की नीरस आँखों में काजल शोभा पाएगा
लेकिन अपने अंतर्मन की भस्म बनाना आवश्यक है
मानव का तन कोरा शव है, शेष न हो यदि लाज ज़रा भी
दैहिक सुख तो यहाँ धरा पर पड़े-पड़े ही सड़ जाएंगे

महल-दुमहलों की रंगत से, नेह भरा छप्पर बेहतर है
रेशम के महंगे चोगों से कबिरा की चादर बेहतर है
भीष्म पितामह के सीने पर बाण चलाते अर्जुन से तो
पुत्रविरह में कट कर गिरता द्रोण तुम्हारा सिर बेहतर है
आश्रम में रहकर संन्यासी संबंधों की लाज रखेंगे
महलों में रहकर दो भाई आपस में ही लड़ जाएंगे

© चिराग़ जैन

Saturday, February 10, 2018

बेरोज़गारी का उपाय

यौवन के हाथ करछी-कड़ाही में घिरे तो
सीमाओं पे शत्रुओं के बान कौन थामेगा
चटनी के स्वाद चखने लगी जवानी गर
बैरियों की तिरछी जुबान कौन थामेगा
जनता के दुःख देखकर जब धरती पे
फटने लगेगा आसमान; कौन थामेगा
देश के युवा यदि पकौड़े बेचने लगे तो
देश के विकास की कमान कौन थामेगा

© चिराग़ जैन

Ref : Prime minister states pakaude talo to berozgari nahi rahegi