Monday, February 12, 2018

समझौता

अपने स्वर्ण सरीखे शब्दों में मैं अगर मिलावट कर लूँ
तो चमकीले पत्थर मेरे भी जीवन में जड़ जाएंगे
कुंदन जैसे शुद्ध विचारों में कुछ समझौता घुल जाए
तो मेरे हित नित्य सफलता के आभूषण गढ़ जाएंगे

चंदन कहकर कीकर बेचूँ -लाभ यही है, मंत्र यही है
लोभ प्रपंचों की दुनिया में धर्म यही है, तंत्र यही है
लेकिन ऐसी विजय पताका किन हाथों से फहराऊंगा
दर्पण के सम्मुख आया तो मैं कैसे मुख दिखलाऊँगा
जिस दिन मेरा पेट विवश कर देगा गर्दन के झुकने को
उस दिन मेरी ख़ुद्दारी के दावे झूठे पड़ जाएंगे

नैतिक शिक्षा की पुस्तक का ज्ञान भुलाना आवश्यक है
अपने आदर्शों के शव का कुचला जाना आवश्यक है
भौतिक सुख की नीरस आँखों में काजल शोभा पाएगा
लेकिन अपने अंतर्मन की भस्म बनाना आवश्यक है
मानव का तन कोरा शव है, शेष न हो यदि लाज ज़रा भी
दैहिक सुख तो यहाँ धरा पर पड़े-पड़े ही सड़ जाएंगे

महल-दुमहलों की रंगत से, नेह भरा छप्पर बेहतर है
रेशम के महंगे चोगों से कबिरा की चादर बेहतर है
भीष्म पितामह के सीने पर बाण चलाते अर्जुन से तो
पुत्रविरह में कट कर गिरता द्रोण तुम्हारा सिर बेहतर है
आश्रम में रहकर संन्यासी संबंधों की लाज रखेंगे
महलों में रहकर दो भाई आपस में ही लड़ जाएंगे

© चिराग़ जैन

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