गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Saturday, June 30, 2018
राजगोपाल सिंह जी की याद
Thursday, June 28, 2018
रुक जाने का मन होता है
चलते-चलते ऊब गया हूँ, रुक जाने का मन होता है
शिक़वे और शिक़ायत कर ली
हिम्मत और हिमाक़त कर ली
यश-अपयश का दौर हुआ है
ज़हर सरीखा कौर हुआ है
नफ़रत का हर पाठ पढ़ा है
बदले का हर ज्वार चढ़ा है
मस्तक पर अवसाद रखा है
अपशब्दों का स्वाद चखा है
छल-बल की हर रीत दिखी है
देहरी चढ़ती जीत दिखी है
अब दुश्मन के आगे जाकर, झुक जाने का मन होता है
चलते-चलते ऊब गया हूँ, रुक जाने का मन होता है
उत्सव देखे, वैभव देखा
यौवन देखा, शैशव देखा
जयकारों का रोर सुना है
तारीफ़ों का शोर सुना है
स्वागत देखे, वंदन देखे
कितने ही अभिनन्दन देखे
फूलों संवरीं राहें देखीं
स्वागत करतीं बांहें देखीं
यश की हर इक सहेली देखी
पसरी रिक्त हथेली देखीं
हर आपाधापी को तजकर, चुक जाने का मन होता है
चलते-चलते ऊब गया हूँ, रुक जाने का मन होता है
इच्छाओं को शिष्ट कर लिया
पूरा जीवन क्लिष्ट कर लिया
तन जागा तो स्वप्न नरारद
हल निकले तो प्रश्न नदारद
झुकना चाहा अहम अड़ गए
रुकना चाहा क़दम बढ़ गए
ढेरों नियम, अगिन सीमाएँ
खंडहर थोथी परिभाषाएँ
कारण मिला अधर फैलाये
कारण मिला नयन भर आए
कभी-कभी बिन कारण भी तो मुस्काने का मन होता है
चलते-चलते ऊब गया हूँ, रुक जाने का मन होता है
© चिराग़ जैन
Wednesday, June 27, 2018
त्रिशंकु
एक तरफ़ घर की चिन्ताएँ
सरगम गाने वाली वीणा
किसको अपनी पीर सुनाएँ
ऊपर अनगिन फूल खिले हैं
जिनकी देह सुगंध बिखेरे
भीतर जड़ में गंधियाते हैं
पत्तों की लाशों के डेरे
जितनी बढ़ती उमस जड़ों की
उतने फूल महकते जाएँ
एक तरफ़ अभिनन्दन जग का
एक तरफ़ घर की चिन्ताएँ
कलकल करती जिस धारा की
घाटों पर पूजा होती है
वो निश्छल नदिया बेचारी
उद्गम पर रिस-रिस रोती है
अंत, गरजता खारापन है
आदि, गलन से ग्रसित शिलाएँ
एक तरफ़ अभिनन्दन जग का
एक तरफ़ घर की चिन्ताएँ
असुरों के संहारक राजा
कोपभवन से हार गए हैं
दुनिया का मन जीत लिया पर
अंतर्मन से हार गए हैं
घर की चैखट पर टूटी हैं
कितनी अपराजेय ध्वजाएँ
एक तरफ़ अभिनन्दन जग का
एक तरफ़ घर की चिन्ताएँ
© चिराग़ जैन
भीष्म पितामह ये बतलाओ!
तुमको राष्ट्र अधिक प्यारा था, या फिर अपनी भीष्म प्रतिज्ञा?
अम्बा की अनुनय ठुकराई, गुरु-आज्ञा भी रास न आई
निज नियमों से न्याय किया पर, अम्बा के ठहरे अन्यायी
बिन आमंत्रण काशी जाकर
बीच स्वयंवर शौर्य दिखाकर
अम्बा को हर कर लाए, फिर
छोड़ दिया परिणय ठुकराकर
एक नियम की रक्षा के हित, शेष नियम भी भूल न जाओ!
भीष्म पितामह ये बतलाओ!
दुःशासन ने सीमा लांघी, दुंदुभि गूंजी प्रलय-समर की
एक तरफ़ थी भीष्म प्रतिज्ञा, एक तरफ़ मर्यादा घर की
तब भी तुमको लाज न आई
तब भी देह नहीं थर्राई
कुरुकुल की सब आन लुटाकर
तुमने झूठी शान बचाई
कुलवधुओं का आँचल से अब, अपनी सूरत को न छुपाओ!
भीष्म पितामह ये बतलाओ!
ठीक कथानक रच सकता था, रक्त-समर भी बच सकता था
और तुम्हारा वचन भुलाना, इतिहासों को पच सकता था
अधर हिला भी सकते थे तुम
भृकुटि तना भी सकते थे तुम
किसमें क्षमता है शासन की
ये समझा भी सकते थे तुम
युग का चेहरा काला करके, अपने श्वेत वसन दमकाओ!
भीष्म पितामह ये बतलाओ!
Monday, June 25, 2018
आओ नया धर्म बनाएँ
मेहनत करने से बचाएं
आओ, एक नया धर्म रचाएं!
धर्म रचने के लिए चाहिए
एक अदद इंसान
जो किसी भी सूरत में इंसान न हो।
जिसे भगवान बनाया जा सके
जिसके हर काम को
महान बताया जा सके
और जिसकी हर मूर्खता को
उसकी लीला कहकर भुनाया जा सके।
धर्म रचने के लिए चाहिए
ठाली लोगों का एक कोर ग्रुप
जो उस आम इंसान के चमत्कारों की
माउथ टू माउथ मार्केटिंग करे
पहली बार आने वाले हर शिकार को
स्पेशल फील कराने की सेटिंग करे
और सोशल मीडिया पर
नवजात भगवान की
सस्पेक्टिंग शिष्याओं से चैटिंग करे।
ये कोर ग्रुप तिनके को भी
बांस की तरह तना देता है
और पड़ोसी के झगड़े को भी
देवासुर-संग्राम बना देता है।
ये ठाली कोर ग्रुप
मार्किट में खड़ा होके
’आइए भैनजी’ की आवाज़ लगाता है
और कोई साड़ी मांगे या सूट
उसे धर्म के शोरूम तक ले आता है
शोरूम तक लाने का जिम्मा क़द्रदान का है
और आगे का काम भगवान का है।
ख़ुद पर यक़ीन न करने वाले लोग
ऐसे भगवानों पर
आसानी से यक़ीन कर लेते हैं
और आश्रमों को धनवान बनाने के लिए
ख़ुद को दीन-हीन कर लेते हैं।
जैसे जैसे बढ़ने लगता है ग्रेड
वैसे वैसे मिलने लगती है एड
जैसे जैसे चमकने लगता है धंधा
वैसे वैसे बरसने लगता है चंदा
जब मंत्री से लेकर संतरी तक
आश्रम में पैर फेरने लगते हैं
तब भगवान धर्मोत्थान के लिए
सरकारी ज़मीनें घेरने लगते हैं
जब ठीक से बजने लगता है
भगवान का डंका
पूरी तरह सेटल हो जाती है
रावण की लंका
तब भक्तों को बना लिया जाता है हथियार
चुनाव से लेकर
घेराव तक का किया जाता है व्यापार
भक्तों के पास दो ही काम होते हैं
भगवान की रक्षा के लिए लड़ना
और भगवान की भक्ति करना
वे ही भगवान की रक्षा करने लगते हैं
मादा भक्त भगवान पर मरती फिरती हैं
और नर भक्त भगवान के लिए मरने लगते हैं
और भगवान के मर जाने के बाद
आश्रम में रह जाते हैं भगवान के आदमक़द चित्र
अब धर्म धारण करता है अपना असली चरित्र
शरीर मिट गया रह गई छाया
जैसे काजू के फल से काजू निकल आया
अब भगवान वह सब कुछ कर सकता है
जो जीते जी नहीं कर पाया
जो भक्त अब भी भगवान पर विश्वास करता है
भगवान उन भक्तों के बच्चों को पास करता है
ऑफिस में प्रमोशन दिलाता है
कन्याओं की शादी कराता है
भक्ति में डूबने वालों को मज़ा देता है
धर्म के विरोधियों को सज़ा देता है
भक्तों के सारे काम करता है
और रात रात भर सपनों में विचरता है
बुद्धि के तर्क बेकार जाते हैं
नियम-क़ानून हार जाते हैं
आस्था जीत जाती है
और भगवान की भक्ति में
कई पीढ़ियों की ज़िंदगी बीत जाती है।
© चिराग़ जैन
Saturday, June 9, 2018
वीरे दी वेडिंग
Friday, June 8, 2018
निर्बल से प्रतिशोध
तब अंधेरे तिलमिलाकर रश्मियों से वैर लेंगे
जो भरी बरसात में भीगे हुए ठिठुरे फिरेंगे
वे अधम भोली बया की बस्तियों से वैर लेंगे
मंत्र-जप की साधना का सत्व जब संभव न होगा
तब करेंगे ढोंग इक पाखण्ड का चोगा पहन कर
जो जला बैठे स्वयं के हाथ समिधा चोरने में
प्रश्न लेकर वे खड़े हैं भक्ति के पावन हवन पर
मृत्यु के प्रख्यात सच को जब नहीं झुठला सकेंगे
तब अघोरी बेसहारा अरथियों से वैर लेंगे
कृष्ण जब षड्यंत्र के आमंत्रणों को भाँप लेंगे
तब विदुर के साग में कमियाँ निकालेगा सुयोधन
जब समर में जीतने की शक्ति पर संदेह होगा
रात में सोते हुओं को फूँक डालेगा सुयोधन
जो सुदर्शन से पराजित हो गए हर एक रण में
वे मधुर सरगम सुनाती वंशियों से वैर लेंगे
वृक्ष के तन पर नहीं चल पाएगा वश कोई जिसका
वो हवा सूखे हुए पत्ते हिलाकर ख़ुश रहेगी
योग्यता जिसमें न हो अट्टालिकाओं के परस की
वो लपट कुछ फूस के छप्पर जलाकर ख़ुश रहेगी
जो झखोरे सामधेनी को नहीं धमका सकेंगे
वे किन्हीं जलदीपकों की बातियों से वैर लेंगे
© चिराग़ जैन
Thursday, June 7, 2018
संघ घोष
Tuesday, June 5, 2018
जब क़त्ल हुए थे जंगल
इसकी बरसात को क़ीमत चुकानी पड़ती है
© चिराग़ जैन
Monday, June 4, 2018
कई पीढ़ियाँ बीत गई हैं
सिर पर मेघ मचलता हो
भीषण कोहरा पड़ता हो
अम्बर दिन भर जलता हो
हर मुश्किल को झेल गए हम मेहनत की तलवार से
हमें कष्ट होता है केवल शासन के व्यवहार से
मिट्टी सख्त हुई तो हम भी कंधे पर हल धर लाए
नाखूनों से नहर काट कर खेतों तक कलकल लाए
ओले बरसे नहीं हटे
पारा उछला वहीं डटे
आंधी आई अड़े रहे
जमा हुए हम नहीं घटे
हम हरदम बढ़कर जूझे है हर इक पारावार से
हमें कष्ट होता है केवल शासन के व्यवहार से
सूखी रोटी खाकर भी हम रह लेते खुशहाली में
कई पीढियां बीत गई हैं ऐसी ही कंगाली में
भीतर कितने शूल गए
जीवन का सुख भूल गए
बिटिया बिन ब्याही बैठी
बापू फाँसी झूल गए
दर्द हमारा आकर देखो, मत पूछो अखबार से
हमें कष्ट होता है केवल शासन के व्यवहार से
यही एक उम्मीद रखी है संसद के रखवालों से
बाजारों को मुक्त करा दो, चोरों और दलालों से
शासन सुख से सोता है
लहसुन धीरज खोता है
गन्ना सूखे खड़े-खड़े
प्याज आँख भर रोता है
श्रम को उसका मोल मिलेय इतना मांगा सरकार से
हमें कष्ट होता है केवल शासन के व्यवहार से
© चिराग़ जैन
Sunday, June 3, 2018
कविता के चिन्ह
भारतीय संस्कृति के प्रसार तथा सर्वांगीण विकास में कवियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिंदी, संस्कृत, उर्दू, बांग्ला, उड़िया, तमिल, मराठी, भोजपुरी आदि तमाम भाषाओं, बोलियों और शैलियों के कवियों ने अपने-अपने समय के सामाजिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक क्षितिज पर हस्ताक्षर किए हैं। यही कारण है कि देश भर में अनेक स्थानों पर कवियों के नाम पर सड़कों, उद्यानों, पुस्तकालयों, शिक्षण संस्थानों आदि का नामकरण किया गया है। कवि विशेष के जन्मस्थान पर उनकी प्रतिमा तथा संग्रहालय बनाने की प्रथा भी विद्यमान है। सिमरिया में राष्ट्रकवि दिनकर के निवास स्थान को संग्रहालय बना दिया गया है और उस संग्रहालय की ओर जाने वाली सड़क पर दिनकर की प्रतिमा भी स्थापित है। इसी प्रकार दरभंगा के निकट नागार्जुन के पैतृक निवास के समीप उनके नाम से पुस्तकालय बनाया गया है। सालासर में बालाजी मंदिर के बाहर मीराबाई की जीवंत प्रतिमा स्थापित है। चित्तौड़गढ़ में मीरा मन्दिर विद्यमान है जहाँ मीराबाई की भव्य प्रतिमा विदेह प्रेम का प्रतीक बनकर विराजित है। होशंगाबाद के पास बाबई नामक स्थान पर माखनलाल चतुर्वेदी जी की विराट प्रतिमा स्थापित है। भोपाल में पत्रकारिता का एक विश्वविद्यालय "माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय" के नाम से संचालित है। आगरा में एक भव्य प्रेक्षागृह को सूरसदन के नाम से जाना जाता है। कन्याकुमारी में संत कवि तिरुवल्लुवर का भव्य स्मारक विश्व भर में विख्यात है। तिरुवल्लुवर का ही एक भव्य पद्मासन बिम्ब महाबलीपुरम में समुद्र तट पर और चेन्नई के मरीना तट पर भी स्थापित है। अहमदाबाद शहर में गुजराती कवि दलपतराम की भव्य प्रतिमा, उनके नाम से शहर का एक प्रमुख चौराहा तथा एक अस्पताल भी मौजूद है। पुदुच्चेरी में सुब्रमण्य भारती की विशाल प्रतिमा स्थापित है। हैदराबाद में तेलुगु कवि क्षेत्रय्या की शानदार प्रतिमा विद्यमान है। कालिदास के नाम पर उज्जैन में "कालिदास संस्कृत अकादमी" संचालित है। मध्यप्रदेश सरकार महाकवि कालिदास की स्मृति में "कालिदास महोत्सव" का भी आयोजन करती है। अलवर में भृतहरि के नाम पर दस दिन का भव्य मेला आयोजित किया जाता है। भारत के संसद भवन की सौध में भी गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की विशाल प्रतिमा स्थापित है। कोलकाता में अनेक स्थानों पर टैगोर की प्रतिमाएँ मौजूद हैं। बल्लवपुर बीरभूम स्थित अमर कुटीर सोसाइटी में टैगोर का जापानी शैली में बनी आकर्षक प्रतिमा मौजूद है। नई दिल्ली में कोपर्निकस मार्ग स्थित ललित कला अकादमी के मुख्यालय को "रबीन्द्र भवन" के नाम से जाना जाता है। सम्भवतः देश भर में सर्वाधिक मूर्तियां जिस कवि की हैं उनमें बांग्ला भाषा के कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर और तमिल भाषा के कवि तिरुवल्लुवर का नाम अग्रणी है। राउरकेला में वेदव्यास का भव्य मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर महाभारत महाकाव्य की रचना हुई थी। दिल्ली में वज़ीराबाद के पास जमुना के एक बड़े घाट का नाम सूरदास जी के नाम पर "सूरघाट" रखा गया है। दिल्ली जंक्शन से प्रतापगढ़ के मध्य चलने वाली 'पद्मावत एक्सप्रेस' का नामकरण मलिक मुहम्मद जायसी की कृति "पद्मावत" के नाम पर किया गया है और यह गाड़ी जायसी के जन्मस्थान "जायस" पर रुकती है। चांदनी चौंक के बल्लीमारान में मिर्ज़ा असदुल्लाह खां ग़ालिब की हवेली आज भी मौजूद है। लखनऊ जंक्शन के प्लेटफॉर्म नम्बर 5 पर रेल की पटरियों के बीच एक बड़ी सी मज़ार है जिसे लोग पीर बाबा की मज़ार कहते है, यह दरअस्ल मशहूर शायर मीर तक़ी मीर की मज़ार है। ऐसे ही आगरे के ताजगंज में बस्ती के बीच नज़ीर अकबराबादी की मज़ार है। दिल्ली में बारापुल्लाह फ्लाईओवर से गुजरते हुए एक पुराना खंडहर दिखाई देता है। बहुत कम लोगों को पता है कि यह खंडहर अब्दुर्रहीम खानखाना का मक़बरा है। हाल ही में ओमप्रकाश आदित्य जी के जन्मस्थान पर उनकी प्रतिमा की स्थापना करवाई गई है। मुम्बई में श्याम ज्वालामुखी के नाम पर "श्याम ज्वालामुखी मार्ग" मौजूद है। दिल्ली के हिंदी भवन में पुरुषोत्तमदास टण्डन तथा गोपाल प्रसाद व्यास जी की प्रतिमाएं मौजूद हैं। ऐसे ही सैंकड़ों स्मारक और भग्नावशेष कविता के साधकों की अनकही कहानियां कहने के लिए देश के हर कोने में ज़िंदा हैं। निश्चित ही आपने भी यात्राओं में इन स्मारकों के दर्शन किये होंगे। आपसे अनुरोध है कि ऐसी जो भी जानकारी आपके पास उपलब्ध है कृपया मुझे उससे अवगत कराएं ताकि इन सब स्मारकों, सड़कों, घाटों, मंदिरों, मज़ारों, हवेलियों, संग्रहालयों, मूर्तियों, पुस्तकालयों तथा शिक्षण संस्थानों आदि का एक दस्तावेज तैयार किया जा सके और आने वाली पीढ़ियों को इन शब्द साधकों से परिचित कराना आसान हो सके।
- चिराग़ जैन