Sunday, June 3, 2018

कविता के चिन्ह

भारतीय संस्कृति के प्रसार तथा सर्वांगीण विकास में कवियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिंदी, संस्कृत, उर्दू, बांग्ला, उड़िया, तमिल, मराठी, भोजपुरी आदि तमाम भाषाओं, बोलियों और शैलियों के कवियों ने अपने-अपने समय के सामाजिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक क्षितिज पर हस्ताक्षर किए हैं।  यही कारण है कि देश भर में अनेक स्थानों पर कवियों के नाम पर सड़कों, उद्यानों, पुस्तकालयों, शिक्षण संस्थानों आदि का नामकरण किया गया है। कवि विशेष के जन्मस्थान पर उनकी प्रतिमा तथा संग्रहालय बनाने की प्रथा भी विद्यमान है।  सिमरिया में राष्ट्रकवि दिनकर के निवास स्थान को संग्रहालय बना दिया गया है और उस संग्रहालय की ओर जाने वाली सड़क पर दिनकर की प्रतिमा भी स्थापित है। इसी प्रकार दरभंगा के निकट नागार्जुन के पैतृक निवास के समीप उनके नाम से पुस्तकालय बनाया गया है। सालासर में बालाजी मंदिर के बाहर मीराबाई की जीवंत प्रतिमा स्थापित है। चित्तौड़गढ़ में मीरा मन्दिर विद्यमान है जहाँ मीराबाई की भव्य प्रतिमा विदेह प्रेम का प्रतीक बनकर विराजित है। होशंगाबाद के पास बाबई नामक स्थान पर माखनलाल चतुर्वेदी जी की विराट प्रतिमा स्थापित है। भोपाल में पत्रकारिता का एक विश्वविद्यालय "माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय" के नाम से संचालित है। आगरा में एक भव्य प्रेक्षागृह को सूरसदन के नाम से जाना जाता है। कन्याकुमारी में संत कवि तिरुवल्लुवर का भव्य स्मारक विश्व भर में विख्यात है। तिरुवल्लुवर का ही एक भव्य पद्मासन बिम्ब महाबलीपुरम में समुद्र तट पर और चेन्नई के मरीना तट पर भी स्थापित है। अहमदाबाद शहर में गुजराती कवि दलपतराम की भव्य प्रतिमा, उनके नाम से शहर का एक प्रमुख चौराहा तथा एक अस्पताल भी मौजूद है। पुदुच्चेरी में सुब्रमण्य भारती की विशाल प्रतिमा स्थापित है। हैदराबाद में तेलुगु कवि क्षेत्रय्या की शानदार प्रतिमा विद्यमान है। कालिदास के नाम पर उज्जैन में "कालिदास संस्कृत अकादमी" संचालित है। मध्यप्रदेश सरकार महाकवि कालिदास की स्मृति में "कालिदास महोत्सव" का भी आयोजन करती है। अलवर में भृतहरि के नाम पर दस दिन का भव्य मेला आयोजित किया जाता है। भारत के संसद भवन की सौध में भी गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की विशाल प्रतिमा स्थापित है। कोलकाता में अनेक स्थानों पर टैगोर की प्रतिमाएँ मौजूद हैं। बल्लवपुर बीरभूम स्थित अमर कुटीर सोसाइटी में टैगोर का जापानी शैली में बनी आकर्षक प्रतिमा मौजूद है। नई दिल्ली में कोपर्निकस मार्ग स्थित ललित कला अकादमी के मुख्यालय को "रबीन्द्र भवन" के नाम से जाना जाता है। सम्भवतः देश भर में सर्वाधिक मूर्तियां जिस कवि की हैं उनमें बांग्ला भाषा के कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर और तमिल भाषा के कवि तिरुवल्लुवर का नाम अग्रणी है। राउरकेला में वेदव्यास का भव्य मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर महाभारत महाकाव्य की रचना हुई थी। दिल्ली में वज़ीराबाद के पास जमुना के एक बड़े घाट का नाम सूरदास जी के नाम पर "सूरघाट" रखा गया है। दिल्ली जंक्शन से प्रतापगढ़ के मध्य चलने वाली 'पद्मावत एक्सप्रेस' का नामकरण मलिक मुहम्मद जायसी की कृति "पद्मावत" के नाम पर किया गया है और यह गाड़ी जायसी के जन्मस्थान "जायस" पर रुकती है। चांदनी चौंक के बल्लीमारान में मिर्ज़ा असदुल्लाह खां ग़ालिब की हवेली आज भी मौजूद है। लखनऊ जंक्शन के प्लेटफॉर्म नम्बर 5 पर रेल की पटरियों के बीच एक बड़ी सी मज़ार है जिसे लोग पीर बाबा की मज़ार कहते है, यह दरअस्ल मशहूर शायर मीर तक़ी मीर की मज़ार है। ऐसे ही आगरे के ताजगंज में बस्ती के बीच नज़ीर अकबराबादी की मज़ार है। दिल्ली में बारापुल्लाह फ्लाईओवर से गुजरते हुए एक पुराना खंडहर दिखाई देता है। बहुत कम लोगों को पता है कि यह खंडहर अब्दुर्रहीम खानखाना का मक़बरा है। हाल ही में ओमप्रकाश आदित्य जी के जन्मस्थान पर उनकी प्रतिमा की स्थापना करवाई गई है। मुम्बई में श्याम ज्वालामुखी के नाम पर "श्याम ज्वालामुखी मार्ग" मौजूद है। दिल्ली के हिंदी भवन में पुरुषोत्तमदास टण्डन तथा गोपाल प्रसाद व्यास जी की प्रतिमाएं मौजूद हैं। ऐसे ही सैंकड़ों स्मारक और भग्नावशेष कविता के साधकों की अनकही कहानियां कहने के लिए देश के हर कोने में ज़िंदा हैं। निश्चित ही आपने भी यात्राओं में इन स्मारकों के दर्शन किये होंगे। आपसे अनुरोध है कि ऐसी जो भी जानकारी आपके पास उपलब्ध है कृपया मुझे उससे अवगत कराएं ताकि इन सब स्मारकों, सड़कों, घाटों, मंदिरों, मज़ारों, हवेलियों, संग्रहालयों, मूर्तियों, पुस्तकालयों तथा शिक्षण संस्थानों आदि का एक दस्तावेज तैयार किया जा सके और आने वाली पीढ़ियों को इन शब्द साधकों से परिचित कराना आसान हो सके।  


- चिराग़ जैन

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