Thursday, July 12, 2018

कवि सम्मेलनों का सफ़र

कवि सम्मेलनों का सफ़र सौ साल पूर्ण करने के पड़ाव पर है। अक्टूबर 1920 में श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय जी की अध्यक्षता और श्री गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' जी के संयोजन में हिंदी के प्रकाण्ड विद्वान श्री जॉर्ज ग्रियर्सन जी के निवास पर कुल 27 कवियों का कवि सम्मेलन हुआ जिसे कवि सम्मेलन का पहला क़दम माना जा सकता है। तब से अब तक यह परंपरा अनवरत चल रही है। स्वाधीनता संग्राम, चीन युद्ध, पाक युद्ध, आपातकाल, कारगिल युद्ध और तमाम ऐतिहासिक घटनाओं में कवि सम्मेलनों ने जन भावना को बौद्धिक ख़ुराक़ उपलब्ध कराई है। कवि सम्मेलनों की इस क्षमता के कारण ही पत्रकारिता के विद्वानों ने इस माध्यम को "लोक परंपरागत जनसंचार माध्यम" के रूप में स्वीकार किया है। देश भर में मनोरंजन तथा बैद्धिक विमर्श को समानांतर रूप से साधने वाली यह कला परिवर्तित होती सामाजिक परिस्थितियों तथा जनता की मानसिक परिस्थितियों के अनुरूप सम्प्रेषण की भाषा व विधा का निर्धारण करती रही है। यही लचीलापन इस कला की सम्प्रेषणीयता को अक्षुण्ण बनाए हुए है। इस प्रभावी सम्प्रेषण माध्यम के अनेक महत्वपूर्ण स्तम्भ 9-10 जुलाई को हरिद्वार में एकत्रित हुए तथा उन्होंने कला के इस भवन के वैभव व गरिमा की वृद्धि की दिशा में विचार विनिमय किया। कवि सम्मेलन समिति के इस अधिवेशन में अपनी क्षमताओं की सीमा के साथ मैंने भी गिलहरी जैसा योगदान दिया, इस हेतु मन संतुष्टि के भाव से आनंदित है।

© चिराग़ जैन

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