मैं अपनी हर जीत भुला दूँ, तुम बिसरा दो हार को
दो तरफ़ा पोषण से सींचें सीधे-सच्चे प्यार को
जब धरती ने हरियाली का रूप सजाना छोड़ दिया
तब अम्बर ने बादल लेकर आना-जाना छोड़ दिया
कोई तो आकर्षण मिलता सावन की बौछार को
दो तरफ़ा पोषण से सींचें सीधे-सच्चे प्यार को
दिन की हर तारीफ़ भुलाकर महक लुटाई रातों पर
ध्यान नहीं अटका ख़ुशबू का दुनिया भर की बातों पर
रातों ने होंठों से चूमा खिलते हरसिंगार को
दो तरफ़ा पोषण से सींचें सीधे-सच्चे प्यार को
सबके जीवन में दुनिया की थोड़ी तो मजबूरी है
फिर भी हर इक रिश्ते में थोड़ा सम्मान ज़रूरी है
कब तक मथुरा ठुकराएगा गोकुल की मनुहार को
दो तरफ़ा पोषण से सींचें सीधे-सच्चे प्यार को
© चिराग़ जैन
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