Saturday, January 19, 2019

उस पल मुझको रोना आया

जब तुम चल दी राह बदल के
दो आँसू ना आँख से छलके
जब मैंने घर वापस आकर, ख़ुद घर का दरवाज़ा खोला
घर के भीतर घर ग़ायब है, ये घर का हर कोना बोला
जब तुमको आवाज़ लगाई
और न कोई उत्तर पाया

उस पल मुझको रोना आया
यादों के सौन्धे बिस्तर पर, मैं बिल्कुल एकाकी सोया
तब समझा, मैंने क्या खोया, तब मैं फफक-फफक कर रोया
पीठ दुखी तो बाम उठाकर
मेरा हाथ लेप ना पाया
उस पल मुझको रोना आया

जब मैंने अपना बोझा ख़ुद अपने ही कंधों पर ढोया
टूटा बटन लगाने को जब ख़ुद सूईं में धागा पोया
सुबह-सुबह भागादौड़ी में
बटुआ साथ नहीं ले पाया
उस पल मुझको रोना आया

देर रात घर वापिस आकर, जब-जब मैंने खाना खाया
फ्रिज से निकली दाल गर्म करने में मुझको आलस आया
जब भोजन के बाद किसी ने
जूठा बर्तन नहीं उठाया
उस पल मुझको रोना आया

जब इस जीवन से उकताकर, मरने की इच्छा हो आई
कहीं किसी ने आँखें पढ़कर मेरी थकन नहीं सहलाई
'मरें तुम्हारे दुश्मन' कहकर
मुझको ढांढस नहीं बंधाया
उस पल मुझको रोना आया

© चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment