तब तलक संसार भर में प्रीति जीवित रह सकेगी
है समर्पण जब तलक तैयार सब कुछ हारने को
उस घड़ी तक भावना की जीत जीवित रह सकेगी
जब तलक बदली स्वयं बेचैन होकर झर न जाए
तब तलक चातक उसे तकता रहेगा प्यास लेकर
बदलियों की शुष्क लापरवाहियों को क्या पता है
कण्ठ में अटके हुए हैं प्राण इक विश्वास लेकर
मृत्यु से पहले बरस जाओ, पिघल जाओ अगर तुम
तो प्रणयगत साधना की रीति जीवित रह सकेगी
उम्र काटी है शिला ने भी यही विश्वास रखकर
एक दिन मझमें विधाता प्राण भर देंगे परस कर
बेर चख-चख कर कोई शबरी प्रतीक्षारत रही है
इस अभागे प्रेम को स्वीकार लेंगे राम हँसकर
चेतना में प्रीत के अमरत्व का उल्लास भर दो
देह भी हर नियति के विपरीत जीवित रह सकेगी
✍️ चिराग़ जैन
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