गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Tuesday, May 28, 2019
महापुरुषों की मुश्किल
Saturday, May 25, 2019
सिस्टम है बड़ा मज़ाकिया
एक तरफ़ दहकाता भभका, दूसरी तरफ़ दहलाती ऊँचाई मदद के हाथ छोटे पड़ रहे थे और लपटों की भुजाएँ बढ़ती आ रही थीं। जिन्हें सहारा समझ कर थामा वो तप कर अंगारे हुए जाते थे। दमकल की लाल गाड़ियों को देख उम्मीद जाग गई होगी कि जैसे फिल्मों में होता है ऐसे ही हमारे कूदने पर व्यवस्था का कोई जाल मौत से पहले आगोश में ले लेगा। कूदने की हिम्मत देने वाला जाल नदारद था और सहारों पकड़ ढीली होती जा रही थी, उस पर भीतर का भभका धकेल देना चाहता था। दमकल की गाड़ियां दूर खड़ी होकर अपनी लाचारी पानी उछाल रही थीं। बच्चे बहुत देर तक मौत से ज़िन्दगी की ओर ले जाने वाली सीढ़ी का इंतज़ार करते रहे, बहुत देर तक उनकी आँखें उस जाल को तलाशती रही जो शायद व्यवस्था ने ऐसे ही किसी पल के लिए टेंडर मंगा मंगाकर ख़रीदा था। बहुत देर तक इन्तज़ार के बाद बच्चे कूद नहीं पाए, और सिस्टम पर टिकी किसी उम्मीद की तरह सिर के बल ज़मीन पर आ गिरे। आह! किताबों में रौशनी ढूंढने निकली ऊर्जा लापरवाहियों की भेंट चढ़ गई। साथ-साथ खिलखिलाने वाले कुछ ख़ूबसूरत फूल एक-एक कर लाशों में तब्दील हो गए। देश संवेदनाएं व्यक्त कर रहा है, और हर संवेदना पर आकाश में 20 जिंदगियां एक-दूसरे को ताली देकर हँस रही हैं कि यार अपना सिस्टम है बड़ा मज़ाकिया!
© चिराग़ जैन
Friday, May 17, 2019
प्रणय गीत
नैन की पाँखुरी खोल कर बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर
ये प्रणय साधना का सुफल है प्रिये
एक पल भी मिलन का न बर्बाद हो
नैन से, बैन से, देह से, नेह से
जिस तरह हो सके, आज संवाद हो
मौन रहकर समय मत गँवा बावरी
इस घड़ी को तू अनमोल कर, बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर
आज की रात जो कुछ कहा जाएगा
वो सुखद याद में दर्ज हो जाएगा
लाज की बात मानी अगर आज तो
ज़िन्दगी पर बहुत कर्ज़ हो जाएगा
सब नियम भूल जा, हर झिझक छोड़ दे
आज मत सोच, मत तोल कर बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर
सेज पर साज सा बज उठा देख ले
चूनरी जो तेरी सरसराने लगी
चूड़ियों ने खनक कर इशारा किया
और पायल तराने सुनाने लगी
कान की बालियों ने कहा कान में
आज की रात दिल खोल कर बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर
© चिराग़ जैन
Thursday, May 16, 2019
सब्र रखना
मैं अभी दिन-रात केवल, एक ही परवाह में हूँ
इस समर के बीच में ही
तुम अचानक छूट मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना
ग्रहदशा बिगड़ी हुई है, इसलिए कुछ अस्त हूँ मैं
पीर को गाता नहीं हूँ, ये न समझो मस्त हूँ मैं
बस किसी दुर्भाग्य के अंधे कुएँ में आ गिरा हूँ
बस इसी अंधे कुएँ को भेदने में व्यस्त हूँ मैं
तुम कहीं इस व्यस्तता से
त्रस्त होकर रूठ मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना
यह प्रतीक्षा का मरुस्थल, तप रहा है, जानता हूँ
एक पत्थर मौन मुझको जप रहा है, जानता हूँ
जानता हूँ उठ रहा है प्रश्नचिन्हों का बवंडर
और तुम्हारा मन निरन्तर कँप रहा है जानता हूँ
इस बवंडर में बिखर कर
स्वप्न सारे लूट मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना
चाहतों की बढ़ रही चिंघाड़ में उतरा हुआ हूँ
विष भरे काँटे चुभे हैं, झाड़ में उतरा हुआ हूँ
दृष्टि तुम पर है, नदी का वेग बढ़ता जा रहा है
बस तुम्हारे ही भरोसे बाढ़ में उतरा हुआ हूँ
अब किसी कच्चे घड़े सम
बीच धारा, फूट मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना
© चिराग़ जैन