Tuesday, May 28, 2019

महापुरुषों की मुश्किल

महापुरुषों के लिए बहुत मुश्किल होता जा रहा है। यदि उनके वश में होता तो फेसबुक से अपनी डेट ऑफ बर्थ और डेट ऑफ डेथ ग़ायब कर देते। न रहता बाँस, न बजती बाँसुरी। पिछली 30 जनवरी को गांधी पूरे दिन सहमे रहे। क्योंकि सत्तर बरस बाद भी उनके देशवासी इस बात पर सहमत नहीं हो पाए हैं कि गांधी को आदर देना चाहिए या गाली। उनकी मृत्यु, हत्या थी या वध। उनका हत्यारा दैत्य था या देवता। एक बार क्लियर कर लो भाई। इतने बड़े देश में एक बार वोटिंग करवा लो, जो बहुमत तय कर दे, वह मान लो। रोज़-रोज़ की फ़जीहत क्यों करते हो। यही हाल 27 मई को नेहरू का था। लेकिन चुनावों में उन्हें जी भरकर कोसनेवाले रहनुमा ने जब राष्ट्र के नाम ट्वीट करके बताया कि नेहरू उतने बुरे नहीं थे, जितना मैं उन्हें चुनावी रैलियों में सिद्ध कर आया था, तो नेहरू की आँखों से ख़ुशी के आँसू निकल पड़े। 28 मई को सावरकर ने नेहरू को सूचना दी कि हाल मेरा भी बढ़िया नहीं है। पूरा देश दिन भर फेसबुक पर यही चिंतन करता रहा है कि सेल्यूलर जेल में मिले ज़ख़्मों पर मरहम लगाई जाए या माफी वाली चिट्ठी से इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ाई जाएँ। चंद्रशेखर आज़ाद भी कई वर्ष से कन्फ्यूज़ हैं कि जिस देश के लिए उन्होंने प्राण दिए, वह उन्हें शहीद समझता है या आतंकवादी! ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने टैगोर से पूछा कि गुरुदेव मेरा कुसूर क्या था। मैंने तो कभी सम्मान भी नहीं चाहा। उनका प्रश्न अनसुना करके गुरुदेव ने कहा, ”बाद में आना यार, अभी मैं ये समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि मैं जॉर्ज पंचम का चाटुकार हूँ या माँ भारती का बेटा हूँ।“ 
सबसे दयनीय स्थिति हेमंत करकरे की है। कई वर्ष तक बहादुरी की मिसाल बने रहने के बाद अचानक देश को लगा कि इस आदमी की थोड़ी ज़्यादा इज़्ज़त हो गई है। इसलिए उन्हें ग़द्दार, क्रूर, दोगला और न जाने क्या-क्या अलंकरण देकर ऐसा कर दिया कि परलोक में उन्होंने अपने बंग्ले के बाहर नेमप्लेट पर हेमंत किरकिरे लिखवा लिया है। 
हाल ही में सारे महापुरुषों ने एक साझा बयान जारी करके कहा है कि- ‘प्यारे देशवासियो! हमारी मूर्तियों को तुड़वाकर फेंक दो, पाठ्यक्रमों से हमें बाहर कर दो, हमारे क़िस्से अगली पीढ़ियों को बिल्कुल मत बताओ, हमारे नाम को हर भवन, सड़कें, धर्मशालाएँ, अस्पताल, हवाई अड्डे, शहर, कस्बे, मुहल्ले पर से मिटा दो, हमारी समाधियों पर सरकारी दफ़्तर बनवा लो और देश के हर प्रवेश द्वार पर हमारे मुँह पर कालिख पुता चित्र स्थापित कर दो, ताकि इस देश में प्रवेश करनेवाला हर शख़्स यह सबक ले सके कि जो माली बाग़ को सुरक्षित रखने की झोंक में ज़मीन में संस्कार बोने भूल जाता है, उसका क्या हश्र होता है।’ 

© चिराग़ जैन

Friday, May 17, 2019

प्रणय गीत

सीप से अधखुले ये अधर मत हिला
नैन की पाँखुरी खोल कर बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर

ये प्रणय साधना का सुफल है प्रिये
एक पल भी मिलन का न बर्बाद हो
नैन से, बैन से, देह से, नेह से
जिस तरह हो सके, आज संवाद हो
मौन रहकर समय मत गँवा बावरी
इस घड़ी को तू अनमोल कर, बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर

आज की रात जो कुछ कहा जाएगा
वो सुखद याद में दर्ज हो जाएगा
लाज की बात मानी अगर आज तो
ज़िन्दगी पर बहुत कर्ज़ हो जाएगा
सब नियम भूल जा, हर झिझक छोड़ दे
आज मत सोच, मत तोल कर बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर

सेज पर साज सा बज उठा देख ले
चूनरी जो तेरी सरसराने लगी
चूड़ियों ने खनक कर इशारा किया
और पायल तराने सुनाने लगी
कान की बालियों ने कहा कान में
आज की रात दिल खोल कर बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर

© चिराग़ जैन

Thursday, May 16, 2019

सब्र रखना

भाग्य की सारी लकीरें, मोड़ने की राह में हूँ
मैं अभी दिन-रात केवल, एक ही परवाह में हूँ
इस समर के बीच में ही
तुम अचानक छूट मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना

ग्रहदशा बिगड़ी हुई है, इसलिए कुछ अस्त हूँ मैं
पीर को गाता नहीं हूँ, ये न समझो मस्त हूँ मैं
बस किसी दुर्भाग्य के अंधे कुएँ में आ गिरा हूँ
बस इसी अंधे कुएँ को भेदने में व्यस्त हूँ मैं
तुम कहीं इस व्यस्तता से
त्रस्त होकर रूठ मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना

यह प्रतीक्षा का मरुस्थल, तप रहा है, जानता हूँ
एक पत्थर मौन मुझको जप रहा है, जानता हूँ
जानता हूँ उठ रहा है प्रश्नचिन्हों का बवंडर
और तुम्हारा मन निरन्तर कँप रहा है जानता हूँ
इस बवंडर में बिखर कर
स्वप्न सारे लूट मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना

चाहतों की बढ़ रही चिंघाड़ में उतरा हुआ हूँ
विष भरे काँटे चुभे हैं, झाड़ में उतरा हुआ हूँ
दृष्टि तुम पर है, नदी का वेग बढ़ता जा रहा है
बस तुम्हारे ही भरोसे बाढ़ में उतरा हुआ हूँ
अब किसी कच्चे घड़े सम
बीच धारा, फूट मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना

© चिराग़ जैन

Monday, May 13, 2019

कोई ईसी के झाड़ा लगाओ

कोई ईसी के झाड़ा लगाओ 
ये काहे मनमोहन हुआ जाए 
ओ ज़रा शेषन सा ओझा बुलाओ 
ये काहे मनमोहन हुआ जाए 

इसको नोटिस, उसको नोटिस, असर नहीं है कोई 
जाति-धर्म के जुमले उछले, भारत माता रोई 
संविधान के कहे मुताबिक द्वंद नहीं हो पाया 
आज तलक भी नमो प्रसारण बन्द नहीं हो पाया 
इसके हाथों में संटी थमाओ 
ये काहे मनमोहन हुआ जाए 

सारे ही दल करते फिरते हैं अपनी मनमानी 
वोटर को धमकी देने की सबने मन में ठानी 
कहीं कोई प्रत्याशी ही अनुशासन तोड़ रहा है 
सब सहकर भी चुप है ये ईसी है या अडवाणी 
इसके कमरे की घण्टी बजाओ 
ये काहे मनमोहन हुआ जाए 

हर प्रत्याशी की हसरत को अच्छी तरह टटोले 
कोई भले किसी दल का हो सबका चिट्ठा खोले 
ईसी जी के अनुशासन का डंडा हर दल पर हो 
ईवीएम से अपना पत्ता कट जाने का डर हो 
ज़रा सख्ती से वोटिंग कराओ 
ये काहे मनमोहन हुआ जाए 

© चिराग़ जैन

Wednesday, May 8, 2019

उदासी का अफ़साना

जिन डेरों ने उत्सव पूरा था रैना के आँचल में 
भोर उन्हीं डेरों पर इक वीराना पाती है 
अंधियारे में जीवन सबका रंग-रंगीला लगता है 
पहली किरण उदासी का अफ़साना पाती है 

जिनके बिन हर महफ़िल का सिंगार अधूरा होता है 
उन फूलों का गुच्छा सुबह केवल घूरा होता है 
जिसके दम पर महफ़िल अपना सिर ऊँचा कर लेती है 
वो सब कुछ सुबह होने तक चूरा-चूरा होता है 
झूठे रंग उतर जाते हैं रात गुज़रने से पहले 
भोर महज सच का बदरंग ख़ज़ाना पाती है 

साज पड़े होते हैं लेकिन सुर थक कर सो जाते हैं 
देह पड़ी रह जाती है और प्राण कहीं खो जाते हैं 
जिनका आकर्षण था उनसे दिल घबराने लगता है 
जश्न सुबह की क्यारी में इक सन्नाटा बो जाते हैं 
रात जवानी की बाँहों में रास रचाती फिरती है 
और सुबह रंगरलियों से उकताना पाती है 

© चिराग़ जैन