महापुरुषों के लिए बहुत मुश्किल होता जा रहा है। यदि उनके वश में होता तो फेसबुक से अपनी डेट ऑफ बर्थ और डेट ऑफ डेथ ग़ायब कर देते। न रहता बाँस, न बजती बाँसुरी। पिछली 30 जनवरी को गांधी पूरे दिन सहमे रहे। क्योंकि सत्तर बरस बाद भी उनके देशवासी इस बात पर सहमत नहीं हो पाए हैं कि गांधी को आदर देना चाहिए या गाली। उनकी मृत्यु, हत्या थी या वध। उनका हत्यारा दैत्य था या देवता। एक बार क्लियर कर लो भाई। इतने बड़े देश में एक बार वोटिंग करवा लो, जो बहुमत तय कर दे, वह मान लो। रोज़-रोज़ की फ़जीहत क्यों करते हो। यही हाल 27 मई को नेहरू का था। लेकिन चुनावों में उन्हें जी भरकर कोसनेवाले रहनुमा ने जब राष्ट्र के नाम ट्वीट करके बताया कि नेहरू उतने बुरे नहीं थे, जितना मैं उन्हें चुनावी रैलियों में सिद्ध कर आया था, तो नेहरू की आँखों से ख़ुशी के आँसू निकल पड़े। 28 मई को सावरकर ने नेहरू को सूचना दी कि हाल मेरा भी बढ़िया नहीं है। पूरा देश दिन भर फेसबुक पर यही चिंतन करता रहा है कि सेल्यूलर जेल में मिले ज़ख़्मों पर मरहम लगाई जाए या माफी वाली चिट्ठी से इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ाई जाएँ। चंद्रशेखर आज़ाद भी कई वर्ष से कन्फ्यूज़ हैं कि जिस देश के लिए उन्होंने प्राण दिए, वह उन्हें शहीद समझता है या आतंकवादी! ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने टैगोर से पूछा कि गुरुदेव मेरा कुसूर क्या था। मैंने तो कभी सम्मान भी नहीं चाहा। उनका प्रश्न अनसुना करके गुरुदेव ने कहा, ”बाद में आना यार, अभी मैं ये समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि मैं जॉर्ज पंचम का चाटुकार हूँ या माँ भारती का बेटा हूँ।“
सबसे दयनीय स्थिति हेमंत करकरे की है। कई वर्ष तक बहादुरी की मिसाल बने रहने के बाद अचानक देश को लगा कि इस आदमी की थोड़ी ज़्यादा इज़्ज़त हो गई है। इसलिए उन्हें ग़द्दार, क्रूर, दोगला और न जाने क्या-क्या अलंकरण देकर ऐसा कर दिया कि परलोक में उन्होंने अपने बंग्ले के बाहर नेमप्लेट पर हेमंत किरकिरे लिखवा लिया है।
हाल ही में सारे महापुरुषों ने एक साझा बयान जारी करके कहा है कि- ‘प्यारे देशवासियो! हमारी मूर्तियों को तुड़वाकर फेंक दो, पाठ्यक्रमों से हमें बाहर कर दो, हमारे क़िस्से अगली पीढ़ियों को बिल्कुल मत बताओ, हमारे नाम को हर भवन, सड़कें, धर्मशालाएँ, अस्पताल, हवाई अड्डे, शहर, कस्बे, मुहल्ले पर से मिटा दो, हमारी समाधियों पर सरकारी दफ़्तर बनवा लो और देश के हर प्रवेश द्वार पर हमारे मुँह पर कालिख पुता चित्र स्थापित कर दो, ताकि इस देश में प्रवेश करनेवाला हर शख़्स यह सबक ले सके कि जो माली बाग़ को सुरक्षित रखने की झोंक में ज़मीन में संस्कार बोने भूल जाता है, उसका क्या हश्र होता है।’
© चिराग़ जैन
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