सीप से अधखुले ये अधर मत हिला
नैन की पाँखुरी खोल कर बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर
ये प्रणय साधना का सुफल है प्रिये
एक पल भी मिलन का न बर्बाद हो
नैन से, बैन से, देह से, नेह से
जिस तरह हो सके, आज संवाद हो
मौन रहकर समय मत गँवा बावरी
इस घड़ी को तू अनमोल कर, बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर
आज की रात जो कुछ कहा जाएगा
वो सुखद याद में दर्ज हो जाएगा
लाज की बात मानी अगर आज तो
ज़िन्दगी पर बहुत कर्ज़ हो जाएगा
सब नियम भूल जा, हर झिझक छोड़ दे
आज मत सोच, मत तोल कर बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर
सेज पर साज सा बज उठा देख ले
चूनरी जो तेरी सरसराने लगी
चूड़ियों ने खनक कर इशारा किया
और पायल तराने सुनाने लगी
कान की बालियों ने कहा कान में
आज की रात दिल खोल कर बात कर
शब्द के व्यंजनों की ज़रूरत नहीं
श्वास की चाशनी घोल कर बात कर
© चिराग़ जैन
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