Thursday, May 16, 2019

सब्र रखना

भाग्य की सारी लकीरें, मोड़ने की राह में हूँ
मैं अभी दिन-रात केवल, एक ही परवाह में हूँ
इस समर के बीच में ही
तुम अचानक छूट मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना

ग्रहदशा बिगड़ी हुई है, इसलिए कुछ अस्त हूँ मैं
पीर को गाता नहीं हूँ, ये न समझो मस्त हूँ मैं
बस किसी दुर्भाग्य के अंधे कुएँ में आ गिरा हूँ
बस इसी अंधे कुएँ को भेदने में व्यस्त हूँ मैं
तुम कहीं इस व्यस्तता से
त्रस्त होकर रूठ मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना

यह प्रतीक्षा का मरुस्थल, तप रहा है, जानता हूँ
एक पत्थर मौन मुझको जप रहा है, जानता हूँ
जानता हूँ उठ रहा है प्रश्नचिन्हों का बवंडर
और तुम्हारा मन निरन्तर कँप रहा है जानता हूँ
इस बवंडर में बिखर कर
स्वप्न सारे लूट मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना

चाहतों की बढ़ रही चिंघाड़ में उतरा हुआ हूँ
विष भरे काँटे चुभे हैं, झाड़ में उतरा हुआ हूँ
दृष्टि तुम पर है, नदी का वेग बढ़ता जा रहा है
बस तुम्हारे ही भरोसे बाढ़ में उतरा हुआ हूँ
अब किसी कच्चे घड़े सम
बीच धारा, फूट मत जाना
सब्र रखना, टूट मत जाना

© चिराग़ जैन

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