Saturday, June 29, 2019

महाप्रज्ञ

 नयन खुले संधान हो गया

पलकें मूँदीं ध्यान हो गया
जो पाया, पीयूष बन गया
जो छोड़ा वह दान हो गया
जिनकी पूरी जीवनचर्या परिभाषा थी धर्म की
महाप्रज्ञ बस संत नहीं थे, उपमा थे सत्कर्म की

जन-जन तक पहुँचे इस ख़ातिर, सरलीकरण किया ग्रन्थों का
बँट कर बिखर नहीं जाएँ हम, एकीकरण किया पंथों का
धर्मोचित विज्ञान बन गया
गीत लिखा तो गान बन गया
जो भी उनके मुख से निकला
वो हर वचन महान बन गया
व्याख्या करते रहे जन्म भर, वे आगम के मर्म की
महाप्रज्ञ बस संत नहीं थे, उपमा थे सत्कर्म की

छोटे छोटे व्रत दिलवाए, अणु की ताक़त पहचानी
पूरी मानवता मोहित थी, वे बोले ऐसी वाणी
मानव को बस मानव माना
भेदभाव का पंथ न जाना
छोटे बच्चों को दे आए
आगम का अनमोल ख़ज़ाना
जीवन भर चर्चा की केवल मानव के गुण-धर्म की
महाप्रज्ञ बस संत नहीं थे, उपमा थे सत्कर्म की

© चिराग़ जैन 

Wednesday, June 26, 2019

एक शुबहा अज़ान देता है 

आइये हिज्र की नमाज़ पढ़ें  

© चिराग़ जैन

Wednesday, June 19, 2019

वही बात फिर...

किसी ख़्वाब को आज छू कर के देखें
अमां अब कोई आरज़ू कर के देखें

जिस इक बात पर हमसफ़र बन गए हम
वही बात फिर हू-ब-हू कर के देखें

ख़मोशी की राहें जुदा कर रही हैं
घड़ी दो घड़ी गुफ़्तगू कर के देखें

जहाँ से मरासिम फ़ना हो गया था
वहीं इक दफ़ा फिर शुरू करके देखें

कोई ज़ख़्म दिल को दुखाने लगा है
चलो आँसुओं से वजू कर के देखें

तकल्लुफ़ हटेगा, क़रीबी बढ़ेगी
जहाँ आप था, उसको तू करके देखें

© चिराग़ जैन

Sunday, June 16, 2019

याचक और साधक

कहीं मन्नत के धागे बांध कर आने नहीं पड़ते
किसी लालच से अपने तीर्थ फुसलाने नहीं पड़ते
हमारे देव बिन मांगे ही देते हैं हमें सब कुछ
हमें कुछ मांगने को हाथ फैलाने नहीं पड़ते

✍️ चिराग़ जैन

Friday, June 14, 2019

दर्पण में उनका चेहरा है

जो सबके अपराध टटोलें
मीठे पानी में विष घोलें
जो जल से जल-जल जाते हैं
जब बोलें कड़वा ही बोलें
वे बेचारे इक दर्पण को, जग का चेहरा मान रहे हैं
दर्पण में उनका चेहरा है, उस पर भौंहें तान रहे हैं

हर युग में कान्हा जन्मे हैं, हर युग में शिशुपाल हुए हैं
जिस धरती पर बुद्ध चले थे, उस पर अंगुलिमाल हुए हैं
दशरथ ने मर कर समझाया, अनुचित के आगे मत झुकना
जब-जब कोपभवन की मानी, तब-तब युग बदहाल हुए हैं
कभी सुदर्शन से समझाए
कभी समर्पण के पथ आए
तम के चेले कभी, कहीं भी
सत के आगे टिक ना पाए
सच का जीवित रहना तय है, इसके बहुत प्रमाण रहे हैं
वे बेचारे इक दर्पण को, जग का चेहरा मान रहे हैं

ईर्ष्या ढूंढ रही है कमियाँ, प्रतिभा बस बढ़ती जाती है
तिनके तकते रह जाते हैं, और लता चढ़ती जाती है
बिन समझे कहने वालों ने, माटी सनी हथेली देखी
लेकिन लगन उसी माटी से, अमृत घट गढ़ती जाती है
अपनों को दुत्कार चुके हैं
यश-वैभव सब हार चुके हैं
एक ज़रा सी ज़िद्द के आगे
पूरा कुल संहार चुके हैं
ख़ुद के हित का ज्ञान नहीं है, कहने को विद्वान रहे हैं
वे बेचारे इक दर्पण को, जग का चेहरा मान रहे हैं

© चिराग़ जैन

Friday, June 7, 2019

 उस पल जब चीख़ बन गई थी 

एक नन्हीं किलकारी 

जब दहल उठा था सारा ब्रह्मांड 

जब दरक गई थी धरती 

उस पल केवल तुम आई थीं 

उसकी छटपटाहट को आलिंगन में भरकर दुलारने 

तुम दूर ले गईं उसे बर्बर वहशी की पहुँच से!  ...

तुमने उसे मारा नहीं; बचा लिया है मृत्यु!  


© चिराग़ जैन

हिंदी कवि सम्मेलन जगत का सबसे उदास दिन

आज 8 जून है। हिंदी कवि सम्मेलन जगत का सबसे उदास दिन। वर्ष 2009 में आज ही की तारीख़ के ब्रह्म मुहूर्त में हिंदी जगत् शोक में डूब गया था। 7 जून को बेतवा महोत्सव था। बहुत समृद्ध मंच था। प्रो अशोक चक्रधर, प्रदीप चौबे, ओमप्रकाश आदित्य, विनीत चौहान, नीरज पुरी, डॉ सरिता शर्मा, ओम व्यास ओम, देवल आशीष, पवन जैन, मदन मोहन समर, लाड सिंह गुर्जर और जॉनी बैरागी जैसे रचनाकारों ने देर रात तक शब्द यज्ञ किया। आश्चर्य यह था कि उस रात मंच पर लगभग प्रत्येक कवि की कविता में मृत्यु का ज़िक्र हुआ। मानो, मृत्यु आगत की सूचना दे रही हो। कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। सभी कवि अलग-अलग गाड़ियों में बैठकर होटल के लिए रवाना हुए। एक गाड़ी में ओमप्रकाश आदित्य, नीरज पुरी, लाडसिंह गुर्जर, ओम व्यास ओम और जॉनी बैरागी सवार हुए। राह में मृत्यु प्रतीक्षारत थी। रात के अंधेरे में हाइवे पर दौड़ती गाड़ी सड़क किनारे खड़े एक अनजान ट्रक से जा टकराई। सरस्वती कुल में सूतक लग गया। हास्य के शास्त्रीय रचनाकार ओमप्रकाश आदित्य को उसी क्षण यम ने सरस्वती से छीन लिया। गाड़ी के भीतर मृत्यु और पीड़ा ताण्डव कर रही थी। गाड़ी का चालक और आदित्य जी मृत पड़े थे। ओमव्यास ओम, नीरज पुरी और लाडसिंह गुर्जर ख़ून से लथपथ थे। जॉनी बैरागी पिछली सीट पर थे। उनके हाथ में फ्रैक्चर था। हड्डी टूटने की पीड़ा के बावजूद वे किसी तरह गाड़ी से बाहर निकले और सड़क पर आने वाली गाड़ियों से सहायता मांगने लगे। पीछे विनीत भाई, समर जी और देवल भाई की गाड़ी आ रही थी। जॉनी को सड़क पर देख विनीत भाई ने गाड़ी रुकवा ली। घटना की भयावहता देख कर देवल भाई विह्वल हो गए लेकिन विनीत भाई ने हिम्मत के साथ गाड़ी से कवियों को बाहर निकालना शुरू किया। नीरज भाई का शरीर भारी था। दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी में वे फँस गए थे। गम्भीर रूप से घायल होने के कारण हिम्मत हारने लगे थे। विनीत भाई उन्हें लगातार आश्वस्त करते रहे कि नीरज हिम्मत रखो, तुम्हें कुछ नहीं होगा। तब तक देश भर में फोन बज गए थे, पास के गाँववाले मदद के लिए आ गए थे, मदन मोहन समर जी ने युद्ध स्तर पर पुलिस की मदद मुहैया करवा दी थी। एक वायुयान नीरज भाई के परिवार को चंडीगढ़ से भोपाल के लिए ले उड़ा था। ओम व्यास ओम कोमा में जा चुके थे। लाडसिंह सिंह और नीरज पुरी देर तक संघर्ष करने के बाद मृत्यु के मेहमान बन चुके थे। बैतूल में नीरज पुरी, शाजापुर में लाड सिंह गुर्जर और दिल्ली में आदित्य जी के अंतिम संस्कार हुए। आदित्य जी के अंतिम संस्कार में अल्हड़ बीकानेरी भी पहुँचे। घटना से इस हद तक आहत थे कि मालवीय नगर श्मशान भूमि के बाहर ही बैठ गए। उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। अस्पताल में भर्ती हो गए। कहते हैं उन दिनों अल्हड़ जी बार बार एक फिल्मी नग़मा गुनगुनाते थे - "आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं।" दस दिन तक जब मीत का कोई जवाब न आया तो 17 जून को अल्हड़ जी ख़ुद चले गए अपने मीत के पास। उधर ओम व्यास ओम बेसुध पड़े मृत्यु से लड़ रहे थे। उन दिनों तकनीक इतनी सहज नहीं थी, फिर भी किसी तरह उनकी कविताओं की रिकॉर्डिंग जुटाई गई और उन्हें सुनाई गई। देश भर का कवि समाज ओम व्यास जी के लिए बेचैन रहा। प्रशासनिक, मानवीय, तकनीकी और अन्य हर प्रकार की सहायता लिए पूरा हिंदी जगत् अनवरत तैनात रहा। लेकिन मृत्यु के साथ जारी यह युद्ध हम हार गए। एक महीने की अवधि में पाँच साथी खो गए। वो दौर याद आता है तो आज भी रूह काँप उठती है। मृत्यु, अंतिम संस्कार, उठावनी, तेरहवीं, रस्म पगड़ी.... ये सब शब्द अनुप्रास हो गए थे। मोबाइल की घण्टी बजती थी तो अनजान भय से मन काँपने लगता था। सरस्वती पुत्रों के इस सबसे कठिन दौर की बरसी पर सभी दिवंगतों को विनम्र श्रद्धांजलि!  

© चिराग़ जैन