नयन खुले संधान हो गया
पलकें मूँदीं ध्यान हो गयाजो पाया, पीयूष बन गया
जो छोड़ा वह दान हो गया
जिनकी पूरी जीवनचर्या परिभाषा थी धर्म की
महाप्रज्ञ बस संत नहीं थे, उपमा थे सत्कर्म की
जन-जन तक पहुँचे इस ख़ातिर, सरलीकरण किया ग्रन्थों का
बँट कर बिखर नहीं जाएँ हम, एकीकरण किया पंथों का
धर्मोचित विज्ञान बन गया
गीत लिखा तो गान बन गया
जो भी उनके मुख से निकला
वो हर वचन महान बन गया
व्याख्या करते रहे जन्म भर, वे आगम के मर्म की
महाप्रज्ञ बस संत नहीं थे, उपमा थे सत्कर्म की
छोटे छोटे व्रत दिलवाए, अणु की ताक़त पहचानी
पूरी मानवता मोहित थी, वे बोले ऐसी वाणी
मानव को बस मानव माना
भेदभाव का पंथ न जाना
छोटे बच्चों को दे आए
आगम का अनमोल ख़ज़ाना
जीवन भर चर्चा की केवल मानव के गुण-धर्म की
महाप्रज्ञ बस संत नहीं थे, उपमा थे सत्कर्म की
© चिराग़ जैन
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