Friday, September 27, 2019

ओ समय!

ओ समय! जब तू मेरे विपरीत चलकर थक चुकेगा 
तब तुझे कुछ देर मेरे साथ भी चलना पड़ेगा 
जिस दीये के भाग्य में घी और बाती आ गई है 
उस दीये को आज सारी रात भी जलना पड़ेगा 

सत्य के तप की परीक्षा जब कभी प्रारब्ध लेगा 
तब महाश्मशान तक प्रारब्ध ख़ुद भी जाएगा ही 
सत्य तो हर इक चुनौती झेल ही लेगा नियति की 
भाग्य लेकिन नित नया दुःख ढूंढ़कर तो लाएगा ही 
जब किसी के वक्ष पर तू मूंग दलने जाएगा तो 
ख़ुद तुझे ही मूंग अपने हाथ से दलना पड़ेगा 
ओ समय! जब तू मेरे विपरीत चलकर थक चुकेगा 
तब तुझे कुछ देर मेरे साथ भी चलना पड़ेगा 

प्रश्नचिह्नों ने स्वयं ही वक्रता का दंश झेला 
उत्तरों ने पूर्णता पाई सरल रेखा बनाकर 
जिस किसी की कीर्ति को विषपात्र सौंपा था समय ने 
ग्लानि धोता फिर रहा उनकी अमर गाथा सुनाकर 
जानकी तो अग्निपथ को पार कर लेगी सहज ही 
किन्तु युग को उस अगन के ताप में जलना पड़ेगा 
ओ समय! जब तू मेरे विपरीत चलकर थक चुकेगा 
तब तुझे कुछ देर मेरे साथ भी चलना पड़ेगा 

राम का वनवास, सीता का विरह, उर्मिल के आँसू 
तू अवध की देहरी पर और पीड़ा क्या रखेगा 
सुत, पितामह, तात, अग्रज खो चुका कौन्तेय रण में 
पाण्डवों के द्वार पर यम और क्रीड़ा क्या रचेगा 
दूसरों को राह में काँटे बिछाने के लिए तो 
ख़ुद तुझे भी कंटकों के रूप में ढलना पड़ेगा 
ओ समय! जब तू मेरे विपरीत चलकर थक चुकेगा 
तब तुझे कुछ देर मेरे साथ भी चलना पड़ेगा 

© चिराग़ जैन

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