भारतीय सिनेमा की बुनियाद में जो नगीने जड़े हुए हैं, उनमें कवि प्रदीप भी एक हैं। जिन दिनों स्वाधीनता संग्राम चरम पर था, तब भारतीय सिनेमा भी राष्ट्रभक्ति के रंग में रंग गया था। जनता में राष्ट्रभक्ति का ज्वार भरने के लिए सिनेमा ब्रिटिश हुक़ूमत के खि़लाफ़ मुखर हो उठा।
सन 1940 में बंधन फ़िल्म के लिए कवि प्रदीप ने हिम्मत से भरी चेतावनी को गीत में पिरो दिया। गीत के बोल थे, ‘दूर हटो ऐ दुनियावालो, हिन्दुस्तान हमारा है’! यही भारतीय स्वाधीनता संग्राम का मूल स्वर भी था। अपनी क़लम के इस तेवर से जब वे ब्रितानिया हुकूमत की आँखों में खटकने लगे तो गिरफ़्तारी से बचने के लिए उन्हें भूमिगत रहना पड़ा।
प्रदीप जी की लेखनी आमूल-चूल राष्ट्रबोध से सुसज्जित थी। युवाओं में जोश भरने के लिए ‘चल-चल रे नौजवान’ भी लिखा और बच्चों को भारत का दर्शन कराने के लिए ‘आओ बच्चो तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिंदुस्तान की’ भी लिखा; गांधीहत्या से आहत होकर ‘दे दी हमें आज़ादी’ भी लिखा और गिरते हुए मानवीय मूल्यों से त्रस्त होकर ‘आज के इस इंसान को ये क्या हो गया’ भी लिखा; आज़ादी की क़ीमत ज़ाहिर करने के लिए ‘हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के’ भी रचा और भारत-चीन युद्ध के शहीदों को नमन करते हुए ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ भी लिखा। ‘चल अकेला, चल अकेला’ जैसा उत्साहवर्धक गीत भी प्रदीप जी की ही लेखनी का वरदान था और ‘सैंया प्यारा है अपना मिलन’ सरीखा प्रेमगीत भी उसी लेखनी का क़माल है।
कवि प्रदीप ने फिल्मों में कुछ गीत गाए भी हैं- ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान’; ‘पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय’ और ‘आओ बच्चो तुम्हें दिखाएँ’ जैसे गीत उनके कण्ठ से सँवर उठे हैं।
जब दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में चीन युद्ध के शहीदों की याद में कार्यक्रम आयोजित हुआ, तब लता जी ने एक गीत प्रस्तुत किया- ‘ऐ मेरे वतन के लोगो, ज़रा आँख में भर लो पानी’; भावुक माहौल में वह गीत लोगों के दिल को छू गया। प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू की आँखें छलछला आईं। पण्डित जी ने अधिकारियों से कहा कि इस गीत के रचनाकार को बुलाओ। अधिकारियों ने बताया कि प्रदीप जी को इस कार्यक्रम का निमंत्रण ही नहीं भेजा गया। इतना सुनते ही पंडित जी नाराज़ हो गए, और अधिकारियों को डाँटते हुए बोले- ”कवि की कविता इस्तेमाल करते हो और कवि को निमंत्रण भी नहीं भेजते।“
सुनते हैं कि नेहरू जी पहली फ़ुरसत में ही मुंबई जाकर कवि प्रदीप से मिले, उस गीत की रचना के लिए उन्हें बधाई दी और अधिकारियों की लापरवाही के लिए क्षमा मांगी। समंदर के किनारे बैठकर माचिस की डिब्बी पर लिखा गया विचार एक अमर गीत में कैसे तब्दील हुआ यह कहानी कवि प्रदीप ने लम्हा-लम्हा जी है। भारतीय गीतों के इतिहास में कवि प्रदीप का योगदान नक्षत्रों के चूर्ण से अंकित है।
-चिराग़ जैन
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