भाषा किसी भी व्यक्तित्व का प्रथम विज्ञापन है। आप अपनी बात कहने के लिए जिस शब्दावली का प्रयोग करते हैं, वह आपकी मूल प्रवृत्ति की द्योतक है।
राजनैतिक भाषणों की गाली-गलौज, अराजकता, अभद्रता तथा अशिष्टता के सैंकड़ों उदाहरणों से यूट्यूब पटा हुआ है। निरर्थक वक्तव्य, कुतर्क, अश्लीलता और मूर्खतापूर्ण वक्तव्यों को रेखांकित करके मीडिया नकारात्मकता को हतोत्साहित करता है। यह अच्छी बात है। ट्रोलिंग कि माध्यम से भी ऐसी पोस्ट्स ख़ूब वायरल हो जाती हैं। लेकिन मुझे एक भी पोस्ट आज तक ऐसी नहीं मिली जो भाषा का स्तर पर सभ्य तथा शिष्ट लोगों की प्रशंसा में लिखी गयी हो। नकारात्मकता को हतोत्साहित करने में जितनी ऊर्जा व्यय होती है उसकी आधी ऊर्जा भी यदि सकारात्मकता के प्रोत्साहन में निवेश की जाए तो पूरा परिदृश्य बदल जाएगा।
जैसे प्रत्येक दल में बड़बोले, अशिष्ट और गालीबाज़ों की उपस्थिति है वैसे ही प्रत्येक दल में शिष्ट, विनम्र, शालीन तथा सभ्य नेताओं की भी उपस्थिति है। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम इन नेताओं के सद्गुणों पर चर्चा करते ही नहीं हैं।
बात ये सभी लोग अपनी-अपनी पार्टी के एजेंडे के अनुरूप ही कहते हैं, लेकिन बात कहने का इनका सलीक़ा उल्लेखनीय है।
दो दशक के सामाजिक जीवन, कवि-सम्मेलनीय यात्राओं और लपेटे में नेताजी के सैंकड़ों एपिसोड करने के कारण अनेकानेक राजनैतिक व्यक्तित्वों से भेंट हुई है। इनमें से कुछ लोगों की वक्तृत्व कला तथा भाषा शैली मन मोह लेती है।
मैं पुनः स्पष्ट कर दूँ कि इनमें से किसी भी नेता के राजनैतिक विचार पर चर्चा न करके मैं केवल इनके भाषा संस्कार की बात कर रहा हूँ।
इस क्रम में पहला नाम है श्री सुधांशु त्रिवेदी का। रामचरितमानस की चौपाइयों से लेकर हिंदी की सैकड़ों कविताएं, उर्दू के हज़ारों अशआर तथा संस्कृत के अनेक श्लोक इन्हें कंठस्थ हैं। किसी भी विषय पर अपनी बात रखते समय ये इन काव्यांशों से अपनी बात को पुष्ट करते हैं। भाषा का संस्कार ऐसा है कि शब्द सधे हुए तथा प्रभावी वाक्य विन्यास के साथ उपस्थित होते हैं।
ठीक इसी तरह श्रीमती रागिनी नायक को भी न जाने कितनी ही नज़्में, ग़ज़लियात, कविताएं, चौपाइयां और श्लोक रटे हुए हैं। और साहित्यिक समझ इतनी परिपक्व है कि संदर्भ उपस्थित होते ही बिल्कुल परफेक्ट पंक्तियाँ उद्धृत करने में ये दक्ष हैं। स्वर को कब कितना ऊँचा करना है और कब खिलखिलाकर चर्चा के तनाव को ग़ायब कर देना है -इसकी समझ रागिनी जी को भरपूर है।
एक वक्ता के रूप में सुधांशु जी और रागिनी जी; दोनों ही की एक ख़ासियत मुझे बहुत प्रभावित करती है और वह यह कि ये दोनों ही लोग सामनेवाले के अखाड़े में उसके स्तर पर उतरकर दाँव लगाना जानते हैं लेकिन जिस भी अखाड़े में उतरते हैं उसे बहुत जल्दी अपने स्तर तक ले आते हैं।
श्री शत्रुघ्न सिन्हा भी हर बात का उत्तर किसी काव्योक्ति से देकर लाजवाब कर देते हैं। उनका अध्ययन कोष बहुत समृद्ध है। और सबसे बड़ी बात यह कि वे अशआर को अशआर की ही तरह पढ़ना जानते हैं।
ऐसे ही एक वक्ता है श्री राकेश सिन्हा। कड़वे सवालों का उत्तर देते समय भी उनकी मिठास कभी ग़ायब नहीं होती। श्री सुधांशु मित्तल भी बड़े धैर्य के साथ विरोधी की बात सुनते हैं फिर मुस्कुराते हुए अपने राजनैतिक अनुभव के पिटारे से कोई संदर्भ तलाशकर धीमी आवाज़ में पुख्ता बात कहते हैं। श्री मनीष सिसोदिया भी असभ्यता के दायरे से दूर रहकर अपनी बात रखने में परिपक्व हैं।
तर्क की कसौटी पर श्री गौरव वल्लभ, श्री कन्हैया कुमार, श्री आलोक शर्मा, श्री कपिल सिब्बल, श्री श्रीकांत शर्मा, श्री शाहनवाज़ हुसैन, श्री अससुद्दीन ओवैसी भी विषय को भटकाने की बजाय टू द प्वाइंट उत्तर देते हैं, किन्तु इन सबको कई जगह धीरज खोते देखा जा चुका है। असभ्य न भी हों तो इनकी आवाज़ से इनके अनियंत्रण को भाँप लिया जाता है।
भारतीय राजनीति ने पंडित अटल बिहारी वाजपेयी और सुषमा स्वराज सरीखे वक्ताओं के उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। लालू प्रसाद यादव जैसा हास्यबोध; आनन्द शर्मा जैसी समझ; शशि थरूर जैसी व्याख्या; के एक गोविंदाचार्य जैसी विद्वत्ता; राजनाथ सिंह जैसा ठहराव और मीरा कुमार जैसी मृदुता भारतीय राजनीति की पहचान रही है।
यदि हमने अच्छे लोगों की चर्चा करना शुरू कर दिया तो भारतीय राजनीति का वह दौर फिर लौट सकेगा।
© चिराग़ जैन
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