Thursday, January 12, 2023

डॉ विष्णु सक्सेना

बात उस दौर की है, जब हिन्दी कवि सम्मेलनों के समापन काव्य पाठ की डोर पर से गीतकारों की गिरफ्त ढीली पड़ रही थी। राजनैतिक परिप्रेक्ष्य और सामरिक परिदृश्य ने तनाव इतना बढ़ा दिया था कि मंच के एक कोने में बैठने वाला हास्य-कवि जनता को आकृष्ट करने लगा था। कवि सम्मेलन बदलकर 'हास्य कवि सम्मेलन' होने लगे थे।
घनाक्षरी और दोहे जैसे छन्द हास्य के परिधान पहन कर इतराने लगे थे। हास्य गीत, पैरोडी, बतरस, चुटकियां और चुटकुले लोकप्रियता के सिंहासन पर विराजमान थे। भीगी कोरों और गुलाबी मुस्कानों के स्थान पर 'ठहाकों' ने श्रोता दीर्घा को आलिंगनबद्ध कर लिया था।
यद्यपि गीत के अनेक पुराने अलमबरदार मंच पर अभी भी उपस्थित थे किंतु हास्य की प्रभावशाली सत्ता के कारण मंच पर आनेवाले नए रंगरूटों का आकर्षण, गीत के स्थान पर हास्य की ओर अधिक था।
इस स्थिति में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक नौजवान अपनी आवाज़ में खनक और संस्कारों में बृज का परिवेश लेकर मंच पर चढ़ा। इस युवा की भाषा इतनी सरल थी कि ठहाके के मोहपाश में बंधे हुए श्रोता भी शृंगार के इस स्वर को अनसुना न कर सके। श्याम रंग में रंगा यह गीतकार, अपना इकहरा बदन लिए जब माइक तक आता था, तो समान्य देहयष्टि के कारण बहुत समान्य ही प्रतीत होता था किंतु जैसे ही अपनी सधी हुई आवाज़ में डुबोकर शब्दों का उच्चारण करता था तो श्रोता दीर्घा को सम्मोहित कर लेता था।
बीच में ऐसे भी दौर आए जब कारगिल युद्ध के समय लोगों ने अपने मूल स्वभाव को छोड़कर वीर रस लिखना शुरू कर दिया। लेकिन डॉ विष्णु सक्सेना ने हर दौर में, हर हाल में बस प्रेम ही गाया।
इस एकाग्र साधना के परिणामस्वरूप आज कवि-सम्मेलन जगत् में उनका न केवल अलग मुकाम है, अपितु विशेष पहचान भी है। डॉ विष्णु सक्सेना उन अंगुलगणित कवियों में शुमार हैं, जिनका अपना नैसर्गिक फैन्स क्लब है।
गीत और सृजन के प्रति उनकी निष्ठा तथा अनवरत सक्रियता उन्हें अनुकरणीय बनाती है। लगभग चार दशक के उनके कवि सम्मेलनीय जीवन मे कई खरगोश उन्हें चुनौती देते हुए दौड़ गए, किंतु अपने छोटे-छोटे कदमों से धरती नापते हुए वे लगातार चल रहे हैं, बिना इस बात की परवाह किए कि कौन इस ट्रैक पर उनसे आगे दौड़ रहा है और कौन उन्हें ओवरटेक कर रहा है!
तकनीक के बदलते चेहरे पर अपनी साधना का तिलक लगाने के लिए वे आजकल अनवरत कार्य कर रहे हैं। कवि-सम्मेलन की यात्राओं के बावजूद निरंतर सृजनरत रहकर कला की पूंजी को समृद्ध करनेवाले चुनिंदा लोगों में से एक डॉ विष्णु सक्सेना का आज जन्मदिन है।
ईश्वर उनकी एकाग्र साधना में त्राटक सिद्ध करे! सृजन की ईमानदार साधना उनकी सकारात्मकता के तंतुओं को पुष्ट करे! प्रेम की सुगंध का आवरण उन्हें कपट की खरपतवार से अछूता रखे -इसी शुभेच्छा के साथ उन्हें जन्मदिन की lovely बधाइयाँ।

✍️ चिराग़ जैन

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