हाँ, जगत् में एक कण के अंश-सा अस्तित्व हूँ मैं
पर मेरा व्यक्तित्व इस कण की चमक दुगुनी करेगा
हाँ, समय में एक क्षण के अंश-सा अस्तित्व हूँ मैं
पर मेरा व्यक्तित्व इस क्षण की दमक दुगुनी करेगा
साँस है बस दास प्राणों की किसी आह्लाद के बिन
हर इमारत ताश का घर है महज; बुनियाद के बिन
वक़्त पर बोला नहीं जो, क्या भला जीवन जिया वो
ज्यों कहानी में कोई किरदार हो संवाद के बिन
हाँ, समर में मात्र रण के अंश सा अस्तित्व हूँ मैं
पर मेरा व्यक्तित्व इस रण की धमक दुगुनी करेगा
कृष्ण जिसका छत्र धारें, मैं वो गोवर्धन नहीं हूँ
देव जिस पर पर पुष्प वारें, कालिया मर्दन नहीं हूँ
बाँसुरी की तान, माखन, मोरपंखी, भी नहीं मैं
चक्र का नर्तन नहीं हूँ, शंख का गुंजन नहीं हूँ
कुंजवन में एक तृण के अंश सा अस्तित्व हूँ मैं
पर मेरा व्यक्तित्व इस वन की गमक दुगुनी करेगा
मैं पराजित गिद्ध जैसा पात्र हूँ, सीताहरण में
मैं हूँ बूढ़े रीछ का प्रेरक वचन, लंकादहन में
देखने में गौण हूँ फिर भी कथा का भार मुझ पर
मैं किसी रथचक्र-सा बेमोल, अभिमन्यु मरण में
कर्ण के किस्से में बिच्छू दंश-सा अस्तित्व हूँ मैं
पर मेरा होना, किसी प्रण की रमक दुगुनी करेगा
~चिराग़ जैन
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