पुलिसकर्मी सड़क पर किसी रिक्शावाले को गरियाते हुए दिखाई देता है, तो हम पुलिसकर्मियों को राक्षस और रिक्शावाले को बेचारा मान बैठते हैं। लेकिन यही रिक्शावाले जब पूरी सड़क घेरकर आपको निकलने का रास्ता नहीं देते, तब हमें ये रिक्शावाले दुष्ट और पुलिसकर्मी रिश्वतखोर लगने लगते हैं। सारे ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते हुए जब कोई रिक्शावाला जब चाहे, जहाँ चाहे घुस जाता है; दो-दो लेन घेरकर चलता है, रेड लाइट जम्प करता है; तब हमारा मन करता है कि उसे धक्का देकर सड़क से बाहर फेंक दें। उस समय हमें उसका ग़रीब होना दिखाई नहीं देता।
हम भारतीय अक्सर भावुकता में अपने मन की धारणाएं बनाते हैं। इसीलिए जब कोई नेता दिल्ली में आकर ई-रिक्शा वितरित करता है तो उसकी दरियादिली और भाषणबाज़ी से भावुक होकर हम तालियाँ पीटने लगते हैं। भावुकता के इस शोर में हमें उस नेता से यह पूछना याद ही नहीं रहता कि जिस शहर की सड़कों पर ई-रिक्शा का यह ज़खीरा छोड़ दिया गया है, उसके चौराहों पर इनके स्टैंड बनाने की कोई जगह ही नहीं है। जो रिक्शावाले इनको लेकर सड़कों पर लहरा रहे हैं, उन्हें लेन, रेड लाइट, जेब्रा क्रॉसिंग, इंडिकेटर जैसे शब्दों के मतलब ही नहीं पता।
सड़कें ट्रैफिक के बोझ से त्राहिमाम का उद्घोष कर रही हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के निवासी पाँच मिनिट में एक किलोमीटर की औसत से गाड़ी चला रहे हैं। मथुरा रोड, नोएडा, कालिंदी कुंज, जमुना बाज़ार, आईटीओ, मिंटो रोड, करनाल बाईपास, उत्तम नगर, पालम फ्लाईओवर, पंजाबी बाग़, आश्रम चौक, मायापुरी, पटेल नगर, भजनपुरा, लक्ष्मी नगर, लालकिला, गुरुग्राम, महिपालपुर, संगम विहार और ओखला जैसे दर्जनों स्थानों पर कभी भी ट्रैफिक जाम की प्रदर्शनी देखी जा सकती है। लेकिन हम इसी बात पर लड़ रहे हैं कि G20 से पहले दिल्ली को नयी बसें मोदी जी ने दी हैं या केजरीवाल ने। हमारे दिमाग़ में यह सवाल कौंधता ही नहीं है कि सवारियाँ लेने-छोड़ने के लिए इन बसों के जो स्टॉप बने हुए हैं उनके लिए सड़क पर "D" की व्यवस्था नहीं है। हमने यह प्रश्न ही नहीं पूछा कि पुरानी बसों के ड्राईवर सड़कों पर तांडव करना कब बंद करेंगे? जगह जगह ख़राब होकर खड़ी बसों को जल्दी से जल्दी हटवाने की सुविधा कब मुहैया की जाएगी?
इस समय इस देश की आवश्यकता केवल इतनी है कि यहाँ की जनता विवेक की साधना करे। कौन नेता मंदिर गया, किसकी पार्टी का नेता मस्जिद जाता है, किसने जनेऊ पहना है, किसने तिलक लगाया है... इन सब सवालों को छोड़कर एक बार इस बात की चिंता की जाए कि जब हम आस्था से भरकर मंदिर या मस्जिद की ओर चलें तो ट्रैफ़िक जाम में फँसकर हमारी आस्था मुरझा न जाए, किसी की रैश ड्राइविंग से प्रभावित होकर हमारे होंठ से ईश्वर-अल्लाह का नाम भूलकर किसी अपशब्द का उच्चारण न कर बैठें।
पेड़ की जड़ों से सड़ांध उठ रही है। इससे जनता का दिल घबराने लगता है तो राजनीति पेड़ की शाखाओं पर पेंट करवा देते हैं। हमें पेड़ स्वस्थ लगने लगता है। हम इस बात में भटक जाते हैं कि डाल पर हरा पेंट करानेवाला नेता अच्छा है या सन्तरी पेंट करानेवाला। जड़ों की सड़न से तना भी गल गया है। और हम इस गले हुए पेड़ की सूखी हुई डालियों पर पोते गए पेंट पर तालियाँ पीट रहे हैं।
लिजलिजे कीड़े पूरे वृक्ष को भीतर ही भीतर चाट रहे हैं। अब तने के ऊपर भी हज़ारों कीड़े रेंगते दिखाई देते हैं और हम इस बात पर खुश हो रहे हैं कि जहाँ से हम देख रहे हैं वहाँ से हमें केवल दूसरी डाल पर कीड़ों का अटैक दिख रहा है। सब अपनी आँखें मसलते हुए सामनेवाले को चिढ़ा रहे हैं कि देख तेरी आँख में कीड़ा घुस गया है।
-चिराग़ जैन
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