Thursday, February 20, 2025

उर्दू और भारत

अगर भाषाओं से धर्म की पहचान होती तो हिन्दी के पास रसखान और रहीम नहीं होते तथा उर्दू के पास फ़िराक़ और गुलज़ार नहीं होते।
राजनीति को मुर्गे लड़ाने का चस्का हो, तो वह कहीं और जाए, भाषाएँ तो आश्रमों की संतति होती हैं।
रामप्रसाद बिस्मिल और भगतसिंह की भाषा को पराया मानने की प्रवृत्ति हमें संस्कृति ही नहीं, अपितु शहीदों के अपमान की भी आदत डाल देगी।
जिनकी लेखनी पर हिन्दी का साहित्य अभिमान कर सकता है उन मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं के 'गबन', 'क़फ़न' तथा 'ईदगाह' जैसे शीर्षक आपकी घृणा से मिटाए नहीं जा सकेंगे।
संस्कृति और लोगों के दिलों से उर्दू को ग़ायब करने का सपना देखने वालों को पहले न्यायपालिका से उर्दू की शब्दावली हटाने का प्रयास करना होगा। और न्यायपालिका भी छोड़िए साहिब, अपनी ख़ुद की बोलचाल से जिस दिन उर्दू को ग़ायब कर दो, उस दिन उर्दू के मुँह पर कालिख पोतने का दुस्साहस करना।
आप घृणा उलीचकर एकाध क्यारी ध्वस्त कर सकते हो लेकिन भाषाई सौहार्द के बगीचे को ध्वंस नहीं कर सकते। क्योंकि उर्दू 'हिन्दी' के नाम में सुरक्षित है। आपकी कड़वाहट उर्दू की मिठास पर कभी हावी नहीं हो सकेगी, क्योंकि उर्दू हमारे थानों में संरक्षित है, उर्दू हमारी अदालतों में सुरक्षित है। आप उर्दू का नाम नहीं मिटा पाएंगे, क्योंकि उर्दू वीर शिरोमणि सिख गुरुओं के नाम में है। आप कभी भी उर्दू को हमारे देश से दूर नहीं कर पाएंगे, क्योंकि उर्दू के बाबा 'शेख फ़रीद' की कविताओं को हमने 'सबद' कहकर गाया है।
उर्दू को पराया कहना ठीक ऐसा ही है ज्यों कोई अपने घर में जन्मी बिटिया को 'पराया' कहकर तिरस्कृत करे। उर्दू को मिटाना है तो नेताजी सुभाषचंद्र बोस से 'जय हिंद' का उद्घोष छीनकर दिखाओ। उर्दू से घृणा करनी है तो 'सरफ़रोशी की तमन्ना' जैसे तरानों से घृणा करो। उर्दू को उखाड़ना है तो क्रांतिकारियों के दिलों में बसे 'इंक़लाब ज़िन्दाबाद' के नारे को उखाड़ने की कोशिश करो। उर्दू को मिटाना है तो चन्द्रशेखर आज़ाद के नाम से 'आज़ाद' उपनाम को मिटाने का जतन करो।
छोड़िए साहिब, राजनीति चंद वोटों के लिए घृणा का तेज़ाब छिड़कने से नहीं रुकेगी और ये देश हमें सिखाता रहेगा कि राम ने रावण की लंका में रहनेवाले विभीषण से भी परहेज नहीं किया। लंका के वैद्य से अपने भाई का इलाज करवाने में भी संदेह नहीं किया। लंका की ओर से लड़नेवाले इन्द्रजीत तक के शव का अपमान नहीं होने दिया। यह राम का देश है साहिब, यहाँ जूठे बेर भी सानन्द ग्रहण किये जाते हैं, यहाँ घृणा का कारवां बहुत दूर तक नहीं चल सकता।
✍️ चिराग़ जैन 

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