गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Friday, September 29, 2017
दीवारों के कान
दीवारों के कान नहीं हैं
© चिराग़ जैन
देवता बहरा हुआ है
जब से वेदी पर विराजा, देवता बहरा हुआ है
हम अभागों के दुखों को देखकर रोया कभी जो
क्रांति की ज्वाला जगा कर फिर नहीं सोया कभी जो
ईश जाने उस हृदय पर कौन सा पहरा हुआ है
जब से वेदी पर विराजा, देवता बहरा हुआ है
आज तक जिसने सभी के पाँव से काँटे निकाले
और सब आदेश भूखों के लिए खुद फूंक डाले
अन्न का वितरण उसी के हुक्म पर ठहरा हुआ है
जब से वेदी पर विराजा, देवता बहरा हुआ है
खून की परवाह तजने का सबक दे साथियों को
वो बताता था कि तोड़ेगा बरसती लाठियों को
आजकल लाठी पे कपड़ा खून का फहरा हुआ है
जब से वेदी पर विराजा देवता बहरा हुआ है
© चिराग़ जैन
Thursday, September 28, 2017
कविकर्म
अना, उम्मीद, नेकी, हिम्मत-ओ-अरमान बाँटेंगे
कभी शब्दों का मरहम इश्क के घावों पे रखेंगे
कभी नफरत को चैनो-अम्न का सामान बाँटेंगे
© चिराग़ जैन
Wednesday, September 27, 2017
बलात्कार
अटक गये हैं मिस्टर यक्ष;
स्त्री-समर्पण
अपनी परेशानी की लेकर आड़
मैं तुमको बहुत मजबूर करता हूँ
कि तुम अपने सभी कष्टों को पल में भूल जाओ
और मेरी हर समस्या को बड़ा समझो!
हर बार झुंझला कर सही
पर मान लेती हो मेरी हर बात
ऐसा भला क्या खास है मुझमें
भला हर बार ऐसे क्यों पिघल जाती हो तुम?
जब कभी
अपने किसी आलस्य पर पर्दा किये
बीमारियों का, मूड का या काम का
मैं डाल देता हूँ तुम्हारे सिर
सदा हर एक लापरवाही अपनी
इन सभी अय्यारियों को जानकर भी
क्यों, भला किस बात से मजबूर हो
मेरे उन्हीं झूठे बहानों से
(जो तुम्हें अब तक यकीनन रट चुके हैं)
क्यों बहल जाती हो तुम?
सच बताऊँ
तुम ही हो
जो प्यार के कोरे छलावे में
निभाए जा रही हो
इस अभागे एक रिश्ते को
जहाँ उस प्यार की हर लाश
जल कर बुझ चुकी है
बह चुकी है भस्म भी उसकी
किसी उफनी नदी की बाढ़ में।
और तुम अब तक
उसी ठंडी लपट में जल रही हो,
मूर्ख हो शायद
जो इक अंधे सफर पर चल रही हो!
सच बताऊँ
मैं अगर होता तुम्हारी ही जगह पर
तो तुम्हें अब तक कभी का छोड़ देता!
सोच बड़ी कर ले
अड़ना और अकड़ना छोड़
या तो सोच बड़ी कर ले
या फिर लिखना-पढ़ना छोड़
© चिराग़ जैन
Monday, September 25, 2017
छेड़छाड़ का विरोध
© चिराग़ जैन
Sunday, September 24, 2017
स्त्री के साथ हुए दुर्व्यवहार की उत्तरदायी स्त्री नहीं है।
सिचुएशन 1 : राधा कृष्ण से प्रेम करती थीं। कृष्ण भी उनसे प्रेम करते थे। दोनों अविवाहित थे किंतु इस प्रेम पर किसी को कोई आपत्ति नहीं। निष्कर्ष : परस्पर सहमति पर आधारित संबंध स्वीकार्य है।
सिचुएशन 2 : कर्ण को द्रौपदी के स्वयंवर में भाग नहीं लेने दिया गया। रावण सीता स्वयंवर में भाग नहीं ले पाए। कर्ण ने सुयोधन के बल पर स्वयंवर के अपमान का प्रतिशोध लेने का प्रयास किया। रावण ने सीता का अपहरण करके अपनी आसक्ति की तुष्टि का प्रयास किया। रावण, कर्ण, सुयोधन, सुशासन आदि सभी लोकनिंद्य होकर युद्ध में खेत हुए। निष्कर्ष : स्त्री को प्रतिशोध की अग्नि शांत करने का "सामान" समझना भयावह भूल है।
सिचुएशन 3 : शूर्पनखा लक्ष्मण पर आसक्त हुई और लक्ष्मण की असहमति के बावजूद उस पर दबाव बनाने का प्रयास किया। लक्ष्मण ने शूर्पनखा की नाक काट दी। निष्कर्ष : पुरुष की सहमति को महत्वहीन समझना स्त्री के अपमान का कारण हो सकता है।
सिचुएशन 4 : अहिल्या पर आसक्ति इंद्र का अपराध था। गौतम ऋषि को भ्रमित कर अहिल्या का बलात्कार करने की घटना में अहिल्या निर्दोष थी फिर भी गौतम ऋषि ने अहिल्या का परित्याग किया। राम ने स्वयं अहिल्या के साथ हुए अन्याय का निदान किया। निष्कर्ष : स्त्री के साथ हुए दुर्व्यवहार की उत्तरदायी स्त्री नहीं है। इस पोस्ट से हमें यह शिक्षा मिलती है कि शास्त्र पूजने की नहीं, पढ़ने की चीज़ हैं।
© चिराग़ जैन
Thursday, September 21, 2017
मीडिया
✍️ चिराग़ जैन
धृतराष्ट्रों को विदुरों की हर बात कसैली लगती है
दर्पण मैला हो तो सारी शक्लें मैली लगती हैं
© चिराग़ जैन
Wednesday, September 20, 2017
आयुध पूजन
अविवेक शक्त हो जाए तो, हर रेख लांघता रण तय है
नि:शस्त्रो की हिंसा तय है, गर्भस्थों का तर्पण तय है
ऋषिकुल से जब भी ग्रहण किये दुर्द्धर्ष शस्त्र रघुबीरों ने
मंत्रों से मन को शुद्ध किया ऋषियों ने और फकीरों ने
यह शस्त्रशुद्धि का उपक्रम केवल ढोंग नहीं, आवश्यक है
यह शक्ति-शौर्य को इंगित है कि दुरुपयोग निजघातक है
रण में जब क्रोध चढ़े सिर पर, रणचण्डी तांडव करती हो
जब काल खड़ा गुर्राता हो, जब भू पर मौत विचरती हो
जब युद्ध चरम पर आ पहुँचे, जब तप्त शिराएँ दहती हों
जब शव पर चलना पड़ता हो, जब रक्त तटीना बहती हो
जब भले बुरे का भान न हो, जब नेत्र बड़े हो जाते हों
जब जबड़े भिंचने लगते हों, जब रोम खड़े हो जाते हों
जब अपने घावों की पीड़ा का ध्यान न हो, आभास न हो
जब महासमर में ध्वंस मचाने में कोई संत्रास न हो
जब हृदय शून्य हो जाता हो, मस्तिष्क गौण हो जाता हो
जब देह शेष रह जाती हो, कारुण्य मौन हो जाता हो
जब क्रोध धधकता हो भीषण, सारा विवेक खो जाता हो
वैरी का लोहू पी-पीकर, जब नर, पिशाच हो जाता हो
ऐसे आवेगुद्वेगों में संयत रहने का ध्यान रहे
विध्वंस मचाने से पहले मानवता का कुछ भान रहे
शर का संधान करे उस क्षण, दो नयन निमीलित हो जाएँ
आक्रोश, क्रोध, आवेश, ध्वंस इक क्षण को कीलित हो जाएँ
गाण्डीव उठाए जब अर्जुन, उस पल उसको यह भास रहे
छूटा शर लौट न पाएगा, बस इतना भर अहसास रहे
दिव्यास्त्र साधने से पहले, योधा पल भर यह ध्यान धरे
क्या यह क्षण टल भी सकता है, इसका उत्तर अनुमान करे
झंझा के तेज झखोरे में, अंतर दीपक को आड़ मिले
हिंसा से घिरते चेतन को, सत्पथ का एक किवाड़ मिले
इस हेतु दहकते शोलों पर, थोड़ी बौछार ज़रूरी है
इस हेतु शस्त्र संधान समय में मंत्रोच्चार ज़रूरी है
✍️ चिराग़ जैन
Tuesday, September 19, 2017
सामाजिक जीवन का मूल्य
Friday, September 15, 2017
Engineer Day
विकास के स्वप्न का साकार रूप है अभियांत्रिकी। किसी राष्ट्र के निर्माण में अभियंताओं की सर्वाधिक प्रत्यक्ष भूमिका होती है। भारत के वे योग्य सपूत जिन्होंने अनवरत साधना से हमें पगडंडी के स्थान पर पक्की सड़कें दीं; बैलगाड़ी से उतार कर गाड़ियों की सवारी कराई; चिट्ठियों पर आधारित संचार को मोबाइल की तकनीक दी और अंगीठी को इंडक्शन से रिप्लेस किया ...उन सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद!
इतना संयम रखना होगा
सुनो, झरोखा खोलो लोगो
जितना चाहो बोलो लोगो
लेकिन शर्त यही है केवल
पूछ पूछकर लखना होगा
पूछ पूछकर बकना होगा
बाहर कोई सत्य नहीं है
एक घिनौना चेहरा सा है
जिसको तुम बंधन कहते हो
वो तुम पर एक पहरा सा है
खूब खिलो, जी भर इतराओ
सारे आलम को महकाओ
जब तक कहें खिलो गुलशन में
जब हम कह दें तब झर जाओ
हर सुंदरता के प्रेमी को
इतना संयम रखना होगा
पूछ पूछकर तकना होगा
© चिराग़ जैन
Tuesday, September 12, 2017
दिन निकलेगा
यह क्रम तो निर्धारित ही है
दिन इक दिन मुझ बिन निकलेगा
यह अनुमोदन पारित ही है
मैं इस भ्रम में जूझ रहा हूँ
मुझसे ही सब काज सधेंगे
पर दुनिया के लोग मुझे भी
दो ही दिन में बिसरा देंगे
विस्मृतियों के वरदानों पर
यह दुनिया आधारित ही है
चाहत, सपना, डर, उम्मीदें
प्रेम, प्रयास, प्रथा, यश-वैभव,
गर्व, विनय, संबंध, सृजन, सुख
हर्ष, विजय, सम्मान, पराभव
इन सब आभासी शब्दों पर
सृष्टि कथा विस्तारित ही है
© चिराग़ जैन