Wednesday, September 27, 2017

बलात्कार

फिर से एक प्रश्न पर
अटक गये हैं मिस्टर यक्ष; 
कि सामान्यतया 
बलात्कार के होते हैं दो पक्ष। 

एक बलात्कारी, 
जो बलात्कार करता है, 
और एक बलात्कृता 
जिसका बलात्कार होता है। 

पहला पक्ष 
यानि बलात्कारी 
एक से लेकर 
दस-बीस तक हो सकते हैं 
अपनी संख्या 
और बलात्कृता की लाचारी के अनुपात में 
ये लोग 
बलात्कार की सिचुएशन को 
कुछ मिनिटों, 
कुछ घंटों, 
कुछ दिनों 
और कुछ वर्षों तक 
ढो सकते हैं। 

यहाँ तक तो बात है बिल्कुल साफ़ 
लेकिन प्रश्न ये है 
कि बलात्कार की सिचुएशन में 
किसको कहा जाता है इंसाफ़! 

जिसका हुआ है बलात्कार 
उसका न कोई मुक़द्दमा 
न कोई एफ़ आई आर 
न कोई तारीख़ 
न कोई सुनवाई 
...सीधी फ़ाइनल कार्रवाई 

टिमटिमाते हुए बुझ जाती है 
जीवन की ज्योत 
उसके हिस्से आती है सज़ा-ए-मौत। 

और जिसने किया है ये दुराचार 
उसको 
पहले तो पुलिस प्रोटेक्शन देती है सरकार 
फिर पुलिस के सामने 
सेलिब्रिटी की मुद्रा में बैठता है वो ढीठ 
और उससे पूछ-पूछ कर पुलिस बनाती है चार्जशीट। 

फिर अदालत, तारीख़ और जाँच 
तब तक ठंडी हो चुकी होती है 
पीड़ित लड़की की चिता की आँच। 

फिर सही और ग़लत की खेंचम-खेंच 
फिर क़ानून की ऊँची अदालतों के पेंच 
जैसे-तैसे फाँसी तक पहुँचती है सरकार 
तब तक सामने आ जाते हैं 
दोषियों के मानवाधिकार। 

कुल मिलाकर कैंसिल हो जाता है फाँसी का प्लान 
कोई नहीं लेता फ़ैसले का संज्ञान 
बार बार दोहराया जाता है यही स्टाइल 
हर बार इसी तरह बंद हो जाती है 
बलात्कार की फ़ाइल। 

इस यक्ष प्रश्न पर सारा समाज मौन है 
यक्ष समझ नहीं पा रहा है 
कि सभ्य क़ानून की निगाह में 
बलात्कार का असली दोषी कौन है। 

© चिराग़ जैन

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