Friday, January 26, 2018

गणतंत्र दिवस

आज राजपथ पर महाराष्ट्र की झाँकी निकली तो महाकवि भूषण के घनाक्षरी से पूरा वातावरण काव्यमय हो गया। अभी भूषण की धमक गूंज ही रही थी कि छत्तीसगढ़ की झाँकी महाकवि कालिदास की विशाल मूर्ति और मेघदूत के श्लोकोच्चार के साथ पुनः कविता का जयघोष करती निकल गई। 

कल गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर भोपाल में था। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने राष्ट्रकवि प्रदीप सम्मान अर्पण समारोह का आयोजन किया था। जिस समय "अंग्रेजो भारत छोड़ो" के उद्घोष को राजद्रोह घोषित करके स्वाधीनता के नायकों को जेल में ठूसा जा रहा था उस समय एक ब्राह्मण के बेटे ने उसी नारे को थोड़ा सलीके से रचकर जनता के आक्रोश को जीवंत रखने का विद्वतकर्म किया। जब तक अंग्रेज सरकार को यह ज्ञात हुआ कि "दूर हटो ऐ दुनियावालो हिंदुस्तान हमारा है" एक फिल्मी गीत मात्र न होकर स्वाधीनता संग्राम का उद्घोष है; तब तक आज़ादी की ललक फिल्मी पर्दे पर चढ़कर पूरे देश में फैल चुकी थी। 

प्रदीप जी ने ऐसे ऐसे विलक्षण गीत रचे कि अनायास ही भारतीय शौर्य के अद्वितीय गायक बन गए। स्वाधीनता के बाद जब 62 की लड़ाई में भारतीय बेटों की अर्थियां पूरे देश को उद्वेलित कर रही थीं तब मेजर शैतान सिंह भाटी की शहादत से बेचैन होकर प्रदीप जी ने वह अमर तराना रच दिया जिसके बिना भारतीय राष्ट्रप्रेम की कथा लिखी ही नहीं जा सकती। 26 जनवरी 1963 को पहली बार लता जी ने दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में "ऐ मेरे वतन के लोगो" को स्वर दिया तो ऐसा लगा जैसे किसी झुंझलाए हुए बच्चे से किसी ने उसका हाल पूछ लिया हो। एक गीत ने पूरे देश की आँखें नम कर दी। भारतीय सेना के शौर्य की गाथा इस करीने से बयान हुई कि युद्ध की पीर लोगों में सिहरन पैदा कर गई।

कल के समारोह में ये सारे किस्से एक-एक कर जीवंत हो गए। मंच पर प्रदीप जी की सुपुत्री मुटुल जी और कैफ भोपाली साहब की सहबज़ादी परवीन कैफ उपस्थित थीं। गत चार दशक से भारत में वीर रस के पर्याय के रूप में प्रतिष्ठापित डॉ हरिओम पँवार को राष्ट्रकवि प्रदीप सम्मान अर्पित किया गया।

सुबह गणतंत्र दिवस की परेड देखने के लिए टेलीविज़न ऑन किया तो लता जी वही अमर गीत गाती दिखीं। दूर कहीं किसी समारोह से 'कर चले हम फिदा' की स्वरलहरी सुनाई दी। अभी होशंगाबाद जाने के लिए टैक्सी मंगाई तो रेडियो पर "ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम" सुन रहा हूँ।

भारत की जनता में गहरे तक बसे इस देशभक्ति के जज़्बे को सलाम। ज़माने भर की व्यस्तताओं के बीच भी कैसे अचानक से हमारी देशभक्ति अपने विराट रूप में प्रकट होकर पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बांध जाती है; यह सुखकारी है। 

इस देशभक्ति के जीर्णोद्धार में "वंदेमातरम" से लेकर "जन-गण-मन" तक और "सारे जहाँ से अच्छा" से लेकर "ऐ मेरे प्यारे वतन" तक के असंख्य गीतों का योगदान हमारे कवि हृदय में नई ऊर्जा का संचरण कर देता है। 

© चिराग़ जैन

26/01/2018

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