मात्र रश्मियों के बूते अंधियार मिटाना कठिन हो गया
दिनकर तुमको स्वयं गहन अंधियारे बीच उतरना होगा
युगों-युगों से जिन घोड़ों के रथ पर हो असवार दिवाकर!
उनके रंग-ढंग भी जाँचो अब फिर से इक बार दिवाकर!
इनके चारे की थैली पर अंधियारे के चिन्ह मिले हैं
इनके चाल-चलन पर तुमको पूरा अंकुश धरना होगा
सुनो दिवाकर! रह-रहकर ऐसी बातें उड़ने लगती हैं
इक निश्चित पथ पर कुछ किरणें इधर-उधर मुड़ने लगती हैं
कोष तुम्हारे श्वेत स्वेद का अगर तंत्र में उलझ गया तो
तुम्हें लांछनों की पीड़ा से आहत होकर मरना होगा
तुम युग-युग से धधक रहे हो, फिर भी अंधियारा जीवित है
कुछ अंधी गलियों में शायद उजियारे का रथ कीलित है
पूरब से पश्चिम तक की निगरानी की मर्यादा छोड़ो
अब नभ से धरती तक तुमको आँखे खोल विचरना होगा
तुमको छूने उड़ी उड़ानों की पाँखें घायल होती हैं
उजियारे की ओर निहारें तो आँखें घायल होती हैं
बहुत भर चुका तुम्हें देखने वाली आंखों में अंधियारा
अब अंधियारे की आंखों में तुम्हें उजाला भरना होगा
कहीं तुम्हीं तो अंधियारे की रक्षा हेतु नियुक्त नहीं हो
तुम्हीं स्वयं काले वैभव के वेतन से तो युक्त नहीं हो
इन सब प्रश्नों के उत्तर दे-देकर अपमानित हो जाओ
इससे पहले तुम्हें सृष्टि का हर अंधियारा हरना होगा
© चिराग़ जैन
No comments:
Post a Comment