ट्रेन में चलनेवाले मुसाफिरों से पैसे वसूलते पुलिसवालों का वीडियो देखा। मन क्षोभ और घृणा से भर गया। खाकी वर्दी की धौंस और सरकारी तंत्र के निकम्मेपन पर थूक रहा था पूरा वीडियो। सत्तर साल हो गए इस देश को आज़ाद हुए। सवा सौ करोड़ भारतीयों को मूलभूत सुविधाएँ देने में पूरी तरह नाकाम यह सिस्टम शर्म आ जाने की सीमा से कहीं आगे बढ़ चुका है।
पुलिस विभाग की अभद्रता, ढिठाई और निष्ठुरता ने जनहित के ढोंग की हर लम्हा खिल्ली उड़ाई है। अपराध और शोषण से त्रस्त नागरिक भी इन थानों में घुसने से कतराता क्यों है -इस प्रश्न का उत्तर न तो सरकार के पास है, न ही पुलिस की छवि सुधारने के लिए किए जा रहे आयोजनों के आयोजकों के पास।
भारत के विकास कार्यों हेतु रात-दिन मेहनत करके टैक्स चुकानेवाला नागरिक भी यदि किसी स्थिति में पुलिस की सहायता लेना चाहे तो उसे दुर्व्यवहार झेलने के लिए तैयार रहना पड़ता है। थाने में सहायता मिले या न मिले, एकाध गाली हर किसी को मिल ही जाती है। जनता के टैक्स के पैसों पर पलनेवाला ये विभाग, जनता की जेब से रिश्वत लूटनेवाला ये विभाग, जब किसी सभ्य नागरिक को गरियाता है, तब ऐसा लगता है जैसे कोई खाना खाने के बाद पत्तल में छेद कर रहा हो।
रिश्वत लेकर कार्रवाई करना और गाली-गलौज करना इस विभाग के कुछ नुमाइंदों को इतना भा गया है कि जो कुछ लोग ईमानदार होकर किसी पीड़ित की वास्तविक मदद करना भी चाहते हैं, उन्हें या तो निष्क्रिय हो जाना पड़ता है या फिर इनके रंग में रंग जाना पड़ता है। शहरों की पढ़ी-लिखी जनता भी इस महकमे की कारगुज़ारियों से बच नहीं पाती, फिर गाँव-कस्बों के सीधे-सादे लोगों का तो कहना ही क्या!
इस देश की पुलिस को रामायण के बाली की तरह यह वरदान प्राप्त है कि जो भी नागरिक बिना किसी एप्रोच के किसी पुलिसवाले के सामने खड़ा हो जाएगा, उसका इज़्ज़तदार होने का भरम समाप्त हो जाएगा और चंद मिनिटों में वह स्वयं को अपराधी मानने लगेगा।
देश के हुक्मरानो! खरबों रुपये के घोटाले आपको मुबारक़, देश की अंतरराष्ट्रीय छवि भी आपको मुबारक़, देश के चुनावों की राजनीति भी आपको मुबारक़, राहुल-मोदी की महाभारत भी आप जानो; इस देश के आम नागरिक को अपनी समस्या बताकर बिना प्रताड़ित हुए थाने से घर लौट सकने की स्थितियाँ इस देश को सौंप दीजिये ताकि आप जब देश की अंतरराष्ट्रीय छवि सुधरने का ढोल पीटें तो कोई वायरल वीडियो आपके रंग में भंग न डाल सके।
© चिराग़ जैन
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