Friday, March 30, 2018

समय चक्र

इक दिन तो ढीला भी होगा, जीवन पर कष्टों का फंदा
सूरज तेरा गर्म उजाला, ठंडा करके देगा चंदा

रिश्तों के अपनेपन का भी, पीड़ा रूप बदल जाती है
जिनके बिन जीवन मुश्किल था, उनकी संगत खल जाती है
जितना तेज तपेगा सूरज, उतना मेह अधिक बरसेगा
जितना अधिक वियोग सहेंगे, उतना नेह गहन बरसेगा
पत्थर छैनी सहकर पुजता, लकड़ी झेल रही है रंदा
सूरज तेरा गर्म उजाला, ठंडा करके देगा चंदा

शनि का आना-जाना झेला, अब कष्टों से डरना कैसा
सपनों को मरते देखा है, इससे बढ़कर मरना कैसा
प्रत्यंतर बदले तो उससे, मन के पत्थर घुल जाते हैं
लग्न वही रहती जीवन भर, लेकिन गोचर खुल जाते हैं
हर क्षण रूप बदलता रहता, ये किस्मत का गोरखधंधा
सूरज तेरा गर्म उजाला, ठंडा करके देगा चंदा

जिसको भी अमरत्व मिलेगा, वह जग को नश्वर मानेगा
जिसको विष पीना आता है, उसको जग ईश्वर मानेगा
रावण हँसता है लंका में, राम बिलखते प्रेम विरह में
कंस महल का वैभव भोगे, कृष्ण जनमते बंदीगृह में
सारा जीवन कष्ट सहे जो, नाम उसी का आनंदकंदा
सूरज तेरा गर्म उजाला, ठंडा करके देगा चंदा

© चिराग़ जैन

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