Friday, March 23, 2018

ठगों का बाज़ार

भारत में सरकारें जनकल्याणकारी नीतियों पर काम करती है। माननीय न्यायालय जनता के प्रति न्याय हेतु उत्तरदायी है। कार्यपालिका जनता की रक्षा हेतु चौबीस घंटे तैनात रहती है। ...ये सब बातें जब सामाजिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तिका में पढ़ते थे तब इस देश को लेकर जैसी छवि बनती थी वह किसी गोलोकधाम से कम नहीं थी। किन्तु जैसे ही हमने अख़बार पढ़ना सीखा तब ज्ञात हुआ कि पाठ्य पुस्तिका की इबारतें असल ज़िंदगी में झूठ साबित होती हैं।
लोकतंत्र के जिन स्तम्भों के प्रति श्रद्धा और आदर उमड़ा था, बाहर आकर देखा तो वे एक-दूसरे के साथ घटिया हरक़तें करते नज़र आए। पाठशाला के स्वप्न से बाहर निकले तो महसूस हुआ कि जनकल्याण एक कवच का नाम है जिसके पीछे खड़े होकर जनता पर क्रूर वार किए जाते हैं। सरकार नीतियाँ बनाते समय सिर्फ इतना ध्यान रखती है कि उसकी सत्ता को बचाने के लिए किस-किस ‘जन’ की ज़रूरत पड़ सकती है। और उसका कितना कल्याण करने से अपनी कमीशनिंग ठीक-ठाक चलती रह सकती है।
जब दिल्ली के बिल्डर करोल बाग़, पहाडग़ंज की आवासीय संपत्तियों को फ्रीहोल्ड करा के उन पर कमर्शियल काम्प्लेक्स बना रहे थे, तब उस क्षेत्र का थाना शायद तीर्थाटन पर गया था। उस क्षेत्र के नगर निगम अधिकारी भी देश सेवा में व्यस्त थे। जब उन कॉम्प्लेक्सों की बिक्री हुई तब रजिस्ट्रार का पूरा कार्यालय भी देश निर्माण में तल्लीन था। जब उस इकाई पर बिजली-पानी के वाणिज्यिक कनेक्शन लगाए गए, तब इन दोनों विभागों को भी ध्यान नहीं आया कि यह आवासीय परिसर है। कई दशकों से सरकार इन व्यापारियों से कमर्शियल टैक्स लेती रही।
बिजली विभाग, जल विभाग, नगर निगम सब व्यावसायिक पैसा वसूलते रहे। अब अचानक माननीय न्यायालय को ज्ञात हुआ कि यह तो आवासीय परिसर है। टैक्स चूसनेवाले विभाग सारा ठीकरा व्यापारी के सिर पर फोड़कर ईमानदारी और सिस्टम की ढाल के पीछे छुप गए। नगर निगम और पुलिस विभाग, माननीय न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए सीलिंग करने पहुँच गए। व्यापारी ठगा-ठगा सा खड़ा रह गया। दिल्ली सरकार ने कहा कि सीलिंग केंद्र सरकार करवा रही है। केंद्र सरकार ने कहा कि यह न्यायालय का आदेश है और न्यायालय के आदेश को हम कैसे टाल सकते हैं।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने एससी/एसटी कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए फैसला दिया कि इनमें कुछ नरमी बरती जाए। फैसला सुनते ही केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के खि़लाफ़ खड़ी हो गई। जनकल्याण के कवच में घुसकर केंद्र सरकार ने जो बयान दिए, उनका वास्तविक भावार्थ ये है- ‘तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या? इलेक्शन सिर पर खड़ा है। राजस्थान की मीणा कम्युनिटी, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ट्राइब्स... सबकी वोट कट जाएगी। सरकार औंधे मुँह गिर जाएगी। उधर पासवान जान खा लेगा। मायावती पहले ही भाजपा के लिए आफत है उसे सीधा लाभ मिलेगा। कोर्ट में बैठकर कुछ भी फैसला देने से पहले वोटिंग के गणित क्यों भूल जाते हो। व्यापारियों को वोट डालने की आदत नहीं है उन्हें नोच लो, हम कुछ नहीं कहेंगे लेकिन झुग्गी-झोंपड़ी, एससी-एसटी तो हमारे वोटिंग के गढ़ हैं भाई, यहाँ हाथ डालने से पहले सौ बार सोचा करो। समझे! अब हम रिव्यू पिटीशन ला रहे हैं, चुपचाप इस फैसले को वापस लेकर पुनर्विचार के अंधे कुएं में फेंक देना।’
...कई बार ऐसा महसूस होता है कि हम ठगों के बाज़ार से गुज़र रहे हैं। जो कम ठगा गया वो ख़ुश होता है। जो ज़्यादा ठगा गया वो अराजक होता है। जिसके कपड़े उतार लिए गए वो आत्मघातक होता है। और जो ठगता है वो गाता फिरता है- ‘सारे जहाँ से अच्छा.....!’

© चिराग़ जैन

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