गारा गूँदो, चाक चलाओ
चाहे मिट्टी में सन जाओ
पर जिस दिन वह रूप धरेगी, जब वह एक सुराही होगी
उस दिन उसको छू लेने की तुमको सख़्त मनाही होगी
जब उसके भीतर का पानी जग की प्यास बुझाता होगा
जब हर आता जाता उसकी तारीफ़ें कर जाता होगा
तब उसको पछतावा होगा
उसके मन में लावा होगा
जिसने भट्ठी में सुलगाया
उसके ऊपर धावा होगा
जब उसकी मनचाही होगी, तनिक नहीं कोताही होगी
तुम पर निर्णय दुनिया देगी, उसकी सिर्फ़ गवाही होगी
तुम मत याद दिलाना उसको सौंपा है आकार तुम्हीं ने
उसके कोमल कच्चेपन को थामा है हर बार तुम्हीं ने
तब वह यही समझती होगी
निश्चित ही मैं सागर होती
निश्चित ही मैं सागर होती
हाथ तुम्हारा ना लगता तो
मैं अब से कुछ बेहतर होती
जब उसकी वाहवाही होगी, तब कुछ लापरवाही होगी
तब तुम उसकी फ़िक्र करोगे, तो वह तानाशाही होगी
© चिराग़ जैन
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