Wednesday, March 11, 2020

जनता चुपचाप देखेगी

कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए और मीडिया की मौज हो गई। भाजपाई बता रहे हैं कि पार्टी को अपने ख़ून-पसीने से सींचनेवाले किसी नेता को साइड लाइन करना नैतिकता नहीं है। यह बयान सुनते ही शत्रुघ्न सिन्हा, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और के एन गोविंदाचार्य जैसे ढेर सारे नाम स्मृतियों में तैर गए। कांग्रेसी बता रहे हैं कि जो दल बदल रहा है वह तुम्हारा भी सगा नहीं होगा। यह बयान सुनते ही नवजोत सिंह सिद्धू, बी डी शर्मा, घनश्याम तिवारी और जनार्दन सिंह गहलोत जैसे नाम ठठाकर हँसने लगे।
भाजपाइयों को कांग्रेस का इतिहास याद आ गया और वे सीताराम केसरी, नरसिम्हा राव और डॉ प्रणब मुखर्जी के अपमान की गाथाएँ सुनाने लगे। ये गाथाएँ सुनकर लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी की आँखें डबडबा आईं।
कांग्रेस में दो लीडरों के आगे सबकी प्रतिभा को दबाने की परंपरा रही। भाजपा में भी प्रतिभाशाली नेतृत्व को सलीक़े से साइड लाइन करने के अनगिन उदाहरण मिल जाएंगे।
प्रश्न कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, पीडीपी, जदयू, राजद, द्रमुक, अद्रमुक, झामुमो या अन्य किसी दल का है ही नहीं। यह शुद्ध रूप से सत्ता की लड़ाई है, जिसमें विचारधारा, नैतिकता, राष्ट्रहित, जनहित, धर्म, सम्प्रदाय, विदेशनीति, अर्थनीति जैसे तमाम शब्द खिलवाड़ की तरह प्रयोग किये जाते हैं।
राजनीति का एक ही सिद्धांत है, हमारे साथ रहो, नहीं तो हमसे गाली खाओ। यह सिद्धांत सभी का है। बेशर्मी और ढिठाई से प्रवक्ता बनकर चैनल्स पर बैठनेवाले रीढ़विहीन लोगों के घर में दर्पण की उपस्थिति निषेध होती है। राजनीति की चौखट पर क़दम रखते ही लाज के चीर स्वतः उतार फेंकने होते हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के दल बदल लेने से कुछ नहीं बदलेगा। चैनल जब कभी सिंधिया परिवार के इतिहास पर बहस करेंगे तो भाजपा और कांग्रेस के प्रवक्ता आपस में संवाद बदल लेंगे। ड्रामा वैसा ही चलेगा। अब कांग्रेस झाँसी की रानी के साथ हुए विश्वासघात पर सिंधिया परिवार को ग़द्दार बनाने पर तुल जाएगी और भाजपा सुभद्राकुमारी चौहान को कम्यूनिस्ट घोषित करके उस कविता और उस दौर के इतिहास को साज़िश करार दे देगी।
तमाशा चलता रहेगा। लीडर अवसर देखकर दल बदलते रहेंगे। आलाकमान समय की नज़ाक़त को देखते हुए सुखरामों को गले लगाते रहेंगे। कार्यकर्ता तो बेचारा जमूरा है। आज उसे कहा जाएगा कि हमने सिंधिया से कुट्टा कर ली है। और कार्यकर्ता फेसबुक पर उसके नाम की गारी गाने लगेगा। कल उसे कहा जाएगा कि अब हमने उससे अब्बा कर ली है और कार्यकर्ता उसके नाम की बधाई गाने लगेगा।
विधायकों को रिजॉर्ट में क़ैद करके ईद के बकरों की तरह ख़रीदने की परंपरा पुष्ट हो रही है और कार्यकर्ता चुनाव के दिन लाइन में लगकर वोट देने की अपील करते रहेंगे। आदर्श नागरिक लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए व्हील चेयर तक पर लदकर वोट डालने जाएगा और समझदार लीडर उसके वोट को हथियार बनाकर लोकतंत्र की टांगें काट डालेगा।
न्यायालय अपील होने तक प्रतीक्षा करेगा और राजनीति क़ानूनी ख़ामियों का लाभ उठाकर न्याय को फाँसी पर लटकाते रहेंगे। कार्यपालिका नपुंसक ख़सम की तरह ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के सिद्धांत पर जिस रात की जो दुल्हन होगी, उसी के तलवे चाटती रहेगी। और मीडिया इस पूरे दंगल में अपनी हाट बिछाकर टीआरपी बटोरती रहेगी।
जनता चुपचाप देखेगी। क्योंकि जनता ने कसम खाई है -
हम, भारत के लोग...!

© चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment