हम अजीब किस्म के नकारात्मक लोग हैं। हमें दूसरों पर उंगली उठाने की लत पड़ी हुई है। इस भयावह संकट के समय में भी आज सुबह से लोग अलग-अलग सेलिब्रिटीज़, अलग-अलग उद्योगपतियों और अलग-अलग राजनेताओं के नाम लिखकर लानत भेज रहे हैं कि संकट के समय वे अपनी पूंजी में से दान करके समाजसेवा क्यों नहीं करते?
हद्द है यार! ऐसी पोस्ट करनेवाले लोग एक ऐसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त हैं, जिसमें ख़ुद के शरीर का कोढ़ इग्नोर करके दूसरे पर कीचड़ उछालने में मज़ा आने लगता है। हमने सुना है कि तवायफ़ भी किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है, लेकिन ये इतने घृणित और नकारात्मक लोग हैं, जो अरथी उठाते हुए भी सबसे अलग स्टाइल में ‘राम नाम सत्य है’ का घोष करते हैं ताकि इनकी ओर ध्यान आकृष्ट हो सके।
किसी को दान करना होगा तो वह ढिंढोरा पीटेगा क्या? क्या इन फेसबुकियों के प्रमाण पत्र से ही किसी की मानवता सिद्ध हो सकती है। किसी भी सफल आदमी को गाली देने में इनको मज़ा केवल इसलिए आता है कि ऐसी हरक़त से इन्हें अपने जैसे विफल और घटिया लोगों के लाइक्स मिल जाते हैं।
मुझे बहुत खेद है कि आज पहली बार मैं इस प्रकार की भाषा प्रयोग कर रहा हूँ, लेकिन इस संवेदनशील समय में भी चरित्र हत्या और निजी प्रहार करके हीरो बनने की मानसिकता वाले लोग यदि कुछ अच्छा न भी बोल सकते थे, तो कम से कम मौन ही रह लेते।
इन बकवादियों से मेरा सीधा प्रश्न है कि आपने इस संकट की घड़ी में कौन-सी समाजसेवा की है? यदि आप देश की इस विकट पीड़ा से दुःखी हैं तो आपको अन्य लोगों के दान का हिसाब रखने की फुरसत कैसे मिल गई? और अगर आप स्वयं इस पीड़ा से विगलित नहीं हैं तो आपको अन्य लोगों पर उंगली उठाने का अधिकार कहाँ से मिल गया?
शर्म आनी चाहिए। देश का एक-एक नागरिक घुटन और त्रास में जी रहा है। सामान्य बुजुर्ग अपने नियमित उपचार के लिए अस्पताल नहीं जा पा रहे। एक-एक दाने को तरसते दिहाड़ी मजदूर एक अंतहीन यात्रा पर चले जाने को विवश हैं।
महंगे स्टूडियो में बेस्ट क्वालिटी के वीडियो बनानेवाले कलाकार अपने घर पर रॉ वीडियो बनाकर जनता का मनोरंजन करके उनका टाइम पास करने का प्रयास कर रहे हैं। चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए राजनेता रात-दिन जागकर स्थितियों को नियंत्रित कर रहे हैं। आम आदमी बिना कोई शोर मचाए प्रधानमंत्री राहत कोष और अन्य सामाजिक संगठनों को अर्थ दान कर रहा है। डॉक्टर और नर्स अपनी फीस का लालच छोड़कर, दिन-रात फोन पर लोगों की समस्याओं का निदान बता रहे हैं। पत्रकार स्काइप और अन्य तकनीकों के माध्यम से पत्रकारिता करके जनता तक सूचनाएँ पहुँचा रहे हैं। पुलिसवाले लोगों को सख्ती से घर रहने के लिए भी कह रहे हैं और नम आँखों से भूखे-बेघरों को खाना भी बाँट रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों ने अपनी एक-एक दिन की तन्ख्वाह दान कर दी है। गुरुद्वारे के कारसेवक पीठ पर टंकी बांधकर सड़कों को सेनिटाइज़ कर रहे हैं। साधु-संत टेलिविज़न के माध्यम से अपने अनुयायियों से संयत रहने की अपील कर रहे हैं। यहाँ तक कि जेल में बंद कैदी भी दिन-रात एक करके मास्क बना रहे हैं ताकि देश में मास्क की कमी न होने पाए।
लेकिन इन नकारात्मक मस्तिष्कों के मोबाइल में ऐसी एक भी पोस्ट नहीं आएगी, जिससे इन्हें लगे कि इस देश की जनता इस दुःख की घड़ी में बिना किसी निजी स्वार्थ के परस्पर सहयोग की भावना से पगी हुई है। इन्हें केवल दूसरों के चरित्र पर उंगली उठाकर लाइक और कमेंट बटोरने से मतलब है।
सही कहा था बाबा तुलसी ने- ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी!’
© चिराग़ जैन
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