भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में कोरोना, दहशत का सबब बन गया है। अमरीका, चीन और इटली जैसे देशों ने सख्ती के साथ जनता को घरों में बन्द कर दिया है। भारत में भी सरकार को कमोबेश सख्ती बरतनी पड़ रही है।
दरअस्ल अनवरत भागती-दौड़ती ज़िन्दगी को टिककर बैठने का अभ्यास ही नहीं रहा है। तेज़ दौड़ती गाड़ी के ड्राइवर को यमुना एक्सप्रेसवे से उतरकर जब आगरा की गलियों में गाड़ी चलानी पड़ती है तो उसे बड़ी कोफ़्त होती है। कुछ ऐसी ही कोफ़्त घर बैठे कामकाजी लोगों को भी हो रही है।
उधर टेलिविज़न के प्रत्येक न्यूज़ चैनल पर चौबीस घण्टे केवल कोरोना ही चल रहा है। कोरोना से संक्रमित लोगों का आँकड़ा, कोरोना से मरनेवालों का आँकड़ा, कोरोना से बचनेवालों का आँकड़ा, लॉकडाउन का सम्मान न करनेवालों की पिटाई, लॉकडाउन का सम्मान करने के लिए सेलिब्रिटीज़ की अपीलिंग वीडियो -इनके अतिरिक्त कुछ नहीं है इन चौबीस घण्टे के पत्रकारों के पास।
जीवन पत्रकारों का भी उतना ही महंगा है, जितना बाक़ी दुनिया का। मीडिया हाउसेज को चाहिए कि इस आपातकाल में अपने न्यूज़ बुलेटिन को चौबीस घण्टे से घटाकर सुबह, दोपहर और शाम को एक-एक घण्टे तक सीमित किया जाए। शेष समय अपने पुराने सुपरहिट शो चलाएँ। यदि कोई महत्वपूर्ण सूचना या जानकारी प्रसारित करनी हो तो रनिंग प्रोग्राम को रोककर, वह सूचना दे दी जाए।
ऐसा करने से अनेक लाभ होंगे, एक तो हमारी ज़िम्मेदार मीडिया को एक-एक नाकाबंदी पर जाकर पुलिसवालों से लोगों को पीटने, प्रताड़ित करने और समझाने की रिक्वेस्ट नहीं करनी पड़ेगी। ऐसे चमत्कार होने बन्द हो जाएंगे कि जब मीडियावाले कैमरा लेकर पहुँचें, ठीक उसी वक़्त विशेष किस्म के बदतमीज़ लोग पुलिसवालों के हत्थे चढ़ें। सारा दिन कोरोना का रोना सुनकर घर बैठी जनता का मानसिक तनाव नहीं बढ़ेगा और अन्य ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रम देखकर उनका ध्यान विकेन्द्रित होगा।
दूसरे, सोशल मीडिया पर अफ़वाह फैलने से रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा जारी व्हाट्सएप हेल्पलाइन के अतिरिक्त कोरोना से सम्बद्ध किसी भी जानकारी का भरोसा न किया जाए। देश में सृजनात्मक लोगों की बहुतायत है। ये लोग टिकटॉक, फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि के माध्यम से घर बैठे लोगों का मनोरंजन करें। ‘लॉकडाउन’ के समय अनेक हास्य प्रधान वीडियो आ रहे हैं। इनसे निश्चित रूप से लोगों का तनाव कम हो सकता है। गीत, हास्य, संगीत, सृजन, मोटिवेशन, शेरो-शायरी, फोटोग्राफी, ऐतिहासिक जानकारी, वैज्ञानिक जानकारी, पौराणिक तथ्य आदि के माध्यम से हम घर बैठी जनता की समय बिताने में सहायता कर सकते हैं।
हास्य प्रधान मनोरंजन सामग्री इस समय देश की जनता को एकांत से उत्पन्न होनेवाले तनाव से सुरक्षित रखेगी। गीत, जनता की संवेदनाओं को सजग और सक्रिय रखने में सहयोगी होंगे। संगीत जीवन के प्रति विरक्ति से बचाए रखेगा। तथ्यात्मक और रोचक जानकारियाँ, जिज्ञासाओं को बचाए रखने में मदद करेंगी। हमारे घरों में लोकगीत, लोक कहावतों, लोक संस्कृति के अनेक चिन्ह आज भी मौजूद हैं। इन प्रतीकों को पहचानकर लोगों से सोशल मीडिया पर साझा करें तो भारत की लोक संस्कृति को पुष्ट करने में ये 21 दिन कारगर साबित होंगे।
तनाव की चर्चा से तनाव और बढ़ता है। तनाव पर विजय प्राप्त करनी है तो स्वयं को संयत करना होगा और इसके लिए दहशत की त्यौरियों को पिघलाकर अधरों पर मुस्कान की प्रतिष्ठापना करनी ही होगी। कोरोना से लड़ने के लिए हम सब घरों तक सीमित हो गए हैं। सरकार, पुलिस, अस्पताल, सफाईकर्मी, मीडिया और जनता मिलकर कोरोना का विध्वंस करने का युद्ध लड़ रहे हैं लेकिन घर के भीतर उदासी और बोरियत उत्पन्न न हो इसके लिए ठहाकों का उत्सव जारी रखना हम सबका कर्तव्य है।
21 दिन बोर होकर काटने से बेहतर है कि 21 दिन हँसते-गाते बिता दिए जाएँ। इन 21 दिनों में हमें आपस में मिलने-जुलने से मना किया जा रहा है लेकिन दिलों के मिलने-जुलने पर कोई रोक नहीं है।
© चिराग़ जैन
Ref : Lockdown declared
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