Wednesday, August 26, 2020

मधुबन पर बस उसका हक़ है

फूलों का सौंदर्य निरखने
बगिया में दुनिया आती है
रंग लुभाते हैं आँखों को
गंध भ्रमर को ललचाती है
लेकिन हर ललचाने वाला
सुख की घड़ियों का ग्राहक है
जड़ में जिसका लगा पसीना
इस उपवन पर उसका हक़ है

शोभा बढ़ती है उपवन की
रूप निरखने वालों से भी
फूलों का मकरंद निखरता
उसको चखने वालों से भी
लेकिन मधुबन उसका होगा
जो ये फूल उगाने आया
तुम सब खिल जाने पर आए
पर वो इन्हें खिलाने आया
तुम उत्सव के अभिनेता हो
वो संघर्षों का नायक है
जिसने सींचे हैं सब पौधे
बस मधुबन पर उसका हक़ है

मंदिर-मंदिर द्वारे-द्वारे
तुमने केवल हाथ पसारे
ईश्वर के व्यापारी बोलें-
ईश्वर हैं क्या सिर्फ़ तुम्हारे?
पूजक बनकर तुमने केवल
इच्छाओं का भार दिया है
छैनी ने आकार दिया है
शब्दों ने विस्तार दिया है
देवालय में मूरत रखकर
शीश झुकाने वाले सुन लें
जिसने रूप गढ़ा मूरत का
बस भगवन पर उसका हक़ है

धरती उनकी है, जो आए
तिनका-तिनका नीड़ बनाने
उनका क्या जो निकल पड़े हैं
ध्वंस मचाती भीड़ बनाने
जो लालच से अभिप्रेरित है
उसका कुछ अधिकार नहीं है
विक्रेता, सर्जक से ऊँचा!
जीवन है, बाज़ार नहीं है
कंस, कालिया सबने केवल
गोकुल का दोहन करना था
जिसने वंशी के स्वर घोले
वृंदावन पर उसका हक़ है

© चिराग़ जैन

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