शास्त्र कहते हैं कि हमें घटनाओं को दृष्टाभाव से देखना चाहिए। उनसे प्रभावित नहीं होना चाहिए। किंतु हम भारतीय, इतने संवेदनशील हैं कि हर घटना से विह्वल हो उठते हैं। यह स्वभाव संत-महंतों की वाणी की अवमानना है।
जब कई युगों में कई अवतार और महापुरुष मनुष्य को स्थितप्रज्ञ न बना सके तब ईश्वर ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सृजन किया। मीडिया ने हमारा मन पक्का करने के लिए हमें एक ही घटना से इतनी बार साक्षात्कार करवाया कि हमारा हृदय वज्र हो गया।
अमरीका में ट्विन टॉवर्स के गिरने की घटना कमज़ोर दिलवालों का दिल दहला न दे इसलिए विश्व भर के न्यूज़ चैनल्स ने उसे अलग-अलग एंगल से इतनी बार दिखाया कि सुख-दुःख के संसारी भाव में फँसे प्राणियों ने गिरनेवाली इमारतों की एक-एक मंज़िल इत्मीनान से गिन लीं।
इस प्रयोग के सफल रहने के बाद हमने संसद पर आतंकवादी हमले से लेकर मुंबई के ताज हमले तक सब कुछ साक्षी भाव से देखा। अपने अनुयायियों को इन ख़बरों से रोमांचित होते देख मीडिया ने हमें रोमांचित करने का नियमित कार्यक्रम तैयार कर लिया।
सूचना प्रेषण के टुच्चे लक्ष्य से प्रारम्भ हुई पत्रकारिता सनसनी, रोमांच और मनोरंजन जैसे विराट लक्ष्यों को साधने में सफल हुई। मीडिया ने प्रवचन नहीं किये, किन्तु अपने आचरण से हमें बताया कि कोई भी समस्या तभी तक बड़ी होती है जब तक अगली समस्या न आ जाए।
संत प्रवचन करते रह गए कि तूफ़ानों के सामने डटकर खड़े होना चाहिए। मीडिया ने यह काम करके दिखा दिया। जब भी कोई तूफ़ान भारत में प्रवेश करने लगा तो हमारे पत्रकार मुम्बई की चौपाटी पर कैमरा फिक्स करके डटकर खड़े हो गए। इस कठिन तपस्या से प्रसन्न हो बड़े से बड़े तूफ़ान ने अपना रास्ता बदल लिया।
इसे कहते हैं साधना। घटना घटे और ख़बर सुना दी जाए, यह तो कोई भी कर सकता है। इसमें काहे का बड़प्पन। घटना से ख़बर तो बनती ही आई है, लेकिन हमारे मीडिया ने ख़बर से घटना बनाकर यह प्रमाणित किया कि आदमी चाहे तो तक़दीर ही नहीं तरतीब भी बदल सकता है।
जिसके घर में कोई मौत हो गई हो, उस मातम में भी मृतक की पत्नी का बढ़िया से फ्रेम बनाकर उसको रोते हुए बाइट देने के लिए तैयार करने की क्षमता के लिए बेग़ैरती की जो तपस्या हमारे पत्रकारों को करनी पड़ती है, उसका अनुमान आम जनता को कभी नहीं हुआ।
मीडिया ने प्रण लिया है कि वह आपकी टीवी स्क्रीन को ख़ाली नहीं रहने देगा। इसलिए कोसी की बाढ़, कोयले के भंडार की समाप्ति, दुनिया नष्ट होने की भविष्यवाणी, कानपुर के पास सोना मिलने का सपना, सलमान का मुक़द्दमा, विकास का एनकाउंटर, राफेल की भारत यात्रा, पीएम का मोर प्रेम, कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक, सिंधिया का दलबदल, अमिताभ बच्चन की नानावटी यात्रा, पायलट का गुड़गांव भ्रमण और ऐसे ही तमाम मुद्दों को कई-कई दिन तक खींचने के बाद यकायक ग़ायब करके यह संदेश देता है कि यह संसार क्षणभंगुर है। इसको निर्लिप्त भाव से देखने वाला प्राणी ही सच्चे सुख को प्राप्त करता है।
सुशांत सिंह राजपूत मुआमले की जाँच को लेकर भी मीडिया ने यही समझाने का प्रयास किया कि जो तुम्हें दिख रहा है वह समस्या नहीं केवल भ्रम है। कल कोई नया झुनझुना मिलेगा तो यह मरीचिका यकायक ओझल हो जाएगी। किन्तु इसके ओझल होने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि मीडिया जनता को रोमांचित करना बंद कर देगा। ‘द शो मस्ट गो ऑन’। इसके लिए किसी की चरित्र हत्या होती हो, तो हो जाए, इसके लिए किसी परिवार की संवेदनाएं खरोंची जाती हों तो खुरचने दो ...बट द शो मस्त गो ऑन।
लॉकडाउन जैसे ख़बरहीन समय में भी मीडिया ने अपने धर्म से मुख नहीं मोड़ा। सुशांत सिंह राजपूत की मौत से हर रोज़ टीआरपी निचोड़ते रहे। फिर उसकी जाँच की प्रक्रिया की कड़ाही चढ़ गई। जिस अभिनेता की असमय मृत्यु से देश स्तब्ध हो गया था, अब उससे जुड़ी ख़बरों से ऊब होने लगी है। शोकमुक्ति का यह तरीक़ा कितना सफल रहा है।
हमें मीडिया के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए कि हमारे समाज को संवेदनहीन बनाकर निष्ठुर कर देने के लिए उसने कितनी गालियाँ खाई हैं।
© चिराग़ जैन
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