अराजकता किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती। स्थिति चाहे कोई भी हो, यदि सभ्यता की सीमा रेखा लांघकर उसका उपाय खोजा जाएगा तो यह पूरी सामाजिक व्यवस्था पर वज्रपात होगा। कोई राजनीतिज्ञ कितना भी भ्रष्ट क्यों न हो; यदि उस पर जूता या स्याही फेंकी जाए, यदि उसे थप्पड़ मारा जाए, तो यह अपने समाज को वीभत्स बना डालने की पहल होगी।
कोई प्रत्याशी वोट मांगने जाए तो उसे वोट देना या न देना जनता का अधिकार है किन्तु उसे लतियाने या मारने-पीटने से जनता की शक्ति नहीं, असभ्यता उजागर होती है।
हिंसा या बर्बरता किसी के भी साथ स्वीकार्य नहीं हो सकती। किसी अपराध के घोषित अपराधी तक को दण्डित करने का अधिकार विधि द्वारा नियुक्त तंत्र को ही दिया जाता है। उसे जनता के बीच फेंक कर उसकी जनहत्या करने की वक़ालत जंगलराज में सम्भव है, सभ्य समाज में नहीं।
जंगलों को तराश कर नगरों का निर्माण करने वाले हमारे पुरखे उस समय अपमानित होते हैं जब हम तंत्र की अनदेखी करके किसी की हत्या या प्रताड़ना का समर्थन करते हैं।
न्याय व्यवस्था लचर है तो उसका उपचार किया जाए; कार्यपालिका में भ्रष्टाचार है तो उसकी सफाई के प्रयास किए जाएं; विधायिका में विद्रूपता है तो मताधिकार से उसे सत्ता से बाहर किया जाए; किंतु अराजक होकर इनमें से किसी भी विकृति का निदान असंभव है।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन, सविनय अवज्ञा, धरना, असहयोग, आंदोलन, रैली और हड़ताल तक से तंत्र की शल्य चिकित्सा स्वीकार्य है किन्तु स्वयं नियमों की अवहेलना करके, स्वयं बर्बर होकर तंत्र को आँखें दिखाना समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
कांग्रेस को अभिमान है कि उसने बांध, व्यवसाय और तकनीकें निर्मित कीं। भाजपा को अभिमान है कि उसने मंदिर निर्माण किया, किसी को अभिमान है कि उसने एक जाति विशेष में अपना काडर निर्मित कर लिया, किसी को विश्वास है कि उसने एक वर्ग विशेष को अपना वोटर बनाया किन्तु कोई आज तक यह दावा नहीं कर सका कि उसने इस देश में 'नागरिकों' का निर्माण किया।
यह देश की पहली आवश्यकता है। और इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है। यदि सब विचाराधाराओं ने नागरिक निर्माण के इस कार्य को अनदेखा करके इसी प्रकार अपने-अपने वोटर, अपने अपने काडर, अपने अपने गुंडे, अपने अपने भक्त और अपने अपने चमचे बनाने पर ही ज़ोर दिया तो फिर न तो किसी के सीढ़ियों पर लड़खड़ाने पर सम्वेदनशीलता देखने को मिलेगी और न ही किसी के स्कूटी से गिरकर अस्थिभंग होने पर कोई शालीनता दिखाई देगी।
हम सब एक दूसरे के कष्ट पर ठहाका लगा रहे होंगे और पूरा विश्व हमारे इस तीतरबाज़ समाज की खिल्ली उड़ा रहा होगा।
-चिराग़ जैन
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