जो रैली में पींग बढ़ाते नारों की
हालत देखो जाकर उन बेचारों की
इंसानों की बस्ती भूखी बैठी है
तुम बातें करते हो चाँद-सितारों की
आँसू की आवाज़ छुपाकर रख पाएँ
इतनी भी औक़ात कहाँ दीवारों की
लहरों से कश्ती का हाथ छुड़ाना है
हिम्मत बढ़ती जाती है पतवारों की
सिगरेट को इक बार बुझाना उंगली से
गर तासीर समझनी है अंगारों की
✍️ चिराग़ जैन
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